जिंदगी के असली मजे उनके लिए नहीं है जो फूलों की छाँव के नीचे खेलते और सोते हैं। बल्कि फूलों की छाँव के नीचे अगर जीवन का स्वाद छिपा है तो वह भी उन्हीं के लिए है जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं जिनका कंठ सूखा हुआ, होंठ फटे हुए और सारा बदन पसीने से तर है। पानी में जो अमृत तत्व है, उसे वह जानता है जो धूप में खूब सूख चुका है वह नहीं जो रेगिस्तान में कभी पड़ा नहीं है।
सुख देने वाली चीजें पहले भी थी और अभी हैं। फर्क यह है कि जो सुखों का मूल्य पहले चुकाते हैं और उनके मजे बाद में लेते हैं, उन्हें स्वाद अधिक मिलता है जिन्हें आराम आसानी से मिल जाता है, उनके लिए आराम ही मौत है। जो लोग पाँव भीगने के खौफ से पानी से बचते रहते हैं समुद्र में डूब जाने का खतरा उन्हीं के लिए है। लहरों में तैरने का जिन्हें अभ्यास है वे मोती लेकर बाहर आएँगे।
चाँदनी की ताजगी और शीतलता का आनंद वह मनुष्य लेता है जो दिनभर धूप में थककर लौटा है, जिसके शरीर को अब रतनाई की जरूरत मालूम होती है और जिनका मन यह जानकर संतुष्ट है कि दिनभर समय उसने किसी अच्छे काम में लगाया है।
इसके विपरीत वह आदमी भी है जो दिन भर खिड़कियाँ बंद करके पंखे के नीचे छिपा हुआ था और अब रात में जिसकी सेज बाहर चाँदनी में लगाई गई है। भ्रम तो शायद उसे भी होता होगा कि वह चाँदनी के मजे ले रहा है, लेकिन सच पूछिए तो वह खुशबूदार फूलों के रस में दिन-रात सड़ रहा है।
भोजन का असली स्वाद उसी को मिलता है जो कुछ दिन बिना खाए भी रह सकता है। ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’, जीवन का भोग त्याग के साथ करो, यह केवल परमार्थ का ही उपदेश नहीं है क्योंकि संयम से भोग करने पर जीवन से जो आनंद प्राप्त होता है, वह निरा भोगी बनकर भोगने से नहीं मिल पाता।
बड़ी चीजें है बड़ी संकटों में विकास पाती हैं, बड़ी हस्तियाँ बड़ी मुसीबतों में पलकर दुनिया पर कब्जा करती हैं। अकबर ने तेरह साल की उम्र में अपने पिता के दुश्मन को परास्त कर दिया था जिसका एकमात्र कारण यह था कि अकबर का जन्म रेगिस्तान में हुआ था और वह भी उस समय जब उसके पिता के पास एक कस्तूरी को छोड़कर और कोई दौलत नहीं थी।
श्री विंस्टन चर्चिल ने कहा है कि जिंदगी की सबसे बड़ी सिफत हिम्मत है। आदमी के और सारे गुण उसके हिम्मती होने से ही पैदा होते हैं।
जिंदगी की दो सूरते हैं। एक तो यह कि आदमी बड़े-से-बड़े मकसद के लिए कोशिश करें, जगमगाती हुई जीत पर पंजा डालने के लिए हाथ बढ़ाए और अगर असफलताएँ कदम-कदम पर जोश की रोशनी के साथ अंधियाली का जाल बुन रही हो, तब भी वह पीछे को पाँव न हटाए।
दूसरी सूरत यह है कि उन गरीब आत्माओं का हमजोली बन जाएँ जो न तो बहुत अधिक सुख पाती हैं और न जिन्हें बहुत अधिक दुख पाने का ही संयोग है, क्योंकि वे आत्माएँ ऐसी गोधूलि में बसती है जहांँ न तो जीत हँसती है और न कभी हार के रोने की आवाज सुनाई पड़ती है। इस गोधूलि वाली दुनिया के लोग बँधे हुए घाट का पानी पीते हैं, वे जिंदगी के साथ जुआ नहीं खेल सकते। और कौन कहता है कि पूरी जिंदगी को दाँव पर लगा देने में कोई आनंद नहीं है ?
अगर रास्ता आगे ही निकल रहा हो तो फिर असली मजा तो पाँव बढ़ाते जाने में ही है। साहस की जिंदगी सबसे बड़ी जिंदगी होती है। ऐसी जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि यह बिल्कुल निडर, बिल्कुल बेखौफ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं। जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला आदमी दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है। अडोरा - पडोरा को देखकर चलना यह साधारण जीत का काम है। क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देखकर मद्धिम बनाते हैं।
साहसी मनुष्य उन सपनों में भी रख लेता है जिन सपनों का कोई व्यवहारिक अर्थ नहीं है। साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता, अपने विचारों में रंगा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है। झुंड में चलना और झुंड में चरना, यह भैंस या भेड़ का काम है। सिंह तो बिल्कुल अकेला होने पर भी मगन रहता है।
अर्नाल्ड बैनेट न एक जगह लिखा है कि जो आदमी है यह महसूस करता है कि किसी महान निश्चय के समय साहस से काम नहीं ले सका, जिंदगी की चुनौती को कबूल नहीं कर सका, वह सुखी नहीं हो सकता। बड़े मौके पर साहस नहीं दिखाने वाला आदमी बराबर अपनी आत्मा के भीतर एक आवाज सुनता रहता है। एक ऐसी आवाज जिसे वही सुन सकता है और जिसे वह रोक भी नहीं सकता। यह आवाज उसे बराबर कहती रहती है, तुम साहस नहीं दिखा सके, तुम कायर की तरह भाग खड़े हुए। सांसारिक अर्थ में जिसे हम सुख कहते हैं उसका ना मिलना, फिर भी इससे कहीं श्रेष्ठ है कि मरने के समय हम अपनी आत्मा से यह धिक्कार सुनें कि तुममें हिम्मत की कमी थी कि तुम्हें साहस का अभाव था, कि तुम ठीक वक्त पर जिंदगी से भाग खड़े हुए। जिंदगी को ठीक से जीना हमेशा जोखिम झेलना है और जो आदमी सकुशल जीने के लिए जोखिम का हर जगह पर घेरा डालता है वह अंततः अपने ही घेरों के बीच कैद हो जाता है और जिंदगी का कोई मजा उसे नहीं मिल पाता क्योंकि जोखिम से बचने की कोशिश में असल में उसने जिंदगी को ही आने से रोक रखा है।
जिंदगी से अंत में हम उतना ही पाते हैं जितनी कि उसमें पूँजी लगाते हैं। यह पू़ँजी लगाना जिंदगी के संकटों का सामना करना है, उसके उस पन्ने को उलट कर पढ़ना है जिसकी सभी अक्षर फूलों से ही नहीं, कुछ अंगारों से भी लिखे गए हैं। जिंदगी का भेद कुछ उसे ही मालूम है जो यह जानकर चलता है कि जिंदगी कभी भी खत्म ना होने वाली चीज है।
ओ जीवन के साधको ! अगर किनारे की भरी हुई सीपियों से ही तुम्हें संतोष हो जाए तो समुद्र के अंतस्तल में छिपे हुए मौक्तिक को कौन बाहर लाएगा ?
दुनिया में जितने भी मजे बिखर गए हैं, उनमें तुम्हारा भी हिस्सा है। वह चीज भी तुम्हारी हो सकती है जिसे तुम अपनी पहुँच के परे मानकर लौटे जा रहे हो।
कामना का अंचल छोटा मत करो, जिंदगी के फल को दोनों हाथों से दबाकर न निचोड़ो, रस की निर्झरी तुम्हारे बहाऊ भी वह सकती है।
लेखक
रामधारी सिंह दिनकर
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