भारतीय समाज में नारी का स्थान-निबंध।

प्रस्तावना__सृष्टि के आदि काल सेे ही नारी की महत्ता अक्षुण्ण है। नारी के बिना संसार की प्रत्येक रचना अधूरी है तथा प्रत्येक कला छविरहित है।
उसमें कोमलता एवं कठोरता का अद्भुत मिश्रण है वह सृष्टि का आधार है। नारी मानव की पूर्णता परिचायक है।
 उसके सपनों को साकार रूप देने वाली है। सौंदर्य की साकार प्रतिमा है।
मातृत्व की विमल विभूति है। नारी सृजन की पूर्णता है। उसके अभाव में मानवता के कल्याण की कल्पना असंभव है।
समाज के रचना-विधान में नारी के मां, प्रेयसी, पुत्री, पत्नी अनेक रूप हैं।
वह सम परिस्थितियों में देवी (मां) है तो विषम परिस्थितियों में 'सावित्रीबाई फुले', 'फूलन देवी' हैं। वस्तुत: नाना रूपों में मानव जीवन को प्रभावित करने वाली नारी एक पहेली है। माना उसकी उपेक्षा करके पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता। वह समाज रूपी गाड़ी का एक पहिया है, जिसके बिना समग्र जीवन ही अधूरा है।


   मानव जाति के इतिहास पर दृष्टिपात करने पर मालूम होता है कि जीवन में कौटुंबिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक सभी क्षेत्रों में प्रारंभ से ही नारी की अपेक्षा पुरूष का आधिपत्य रहा है। पुरुष ने अपनी इस श्रेष्ठता और शक्ति संपन्नता का लाभ उठाकर स्त्री जाति पर मनमाने अत्याचार किए हैं। उसने नारी की स्वतंत्रता का अपहरण कर उसे पराधीन बना दिया।
सहयोगिनी या सहचरी के के स्थान पर उसे अनुचरी बना दिया और स्वयं उसका पति, स्वामी, नाथ, पथ-प्रदर्शक, और साक्षात् ईश्वर बन बैठा।
पुरुष ने नारी के मस्तक में यह बात अच्छी तरह जमा दी कि वह असहाय, हीन और अबला है।
पुरुष के बिना समाज में उसकी स्थिति निरर्थक है। पुरुष उसकी सुरक्षा करता है; इसीलिए पुरुष की सेवा करना ही उसका एकमात्र धर्म है। परिणामत: मानव जाति के इतिहास में नारी की स्थिति दयनीय बनकर रह गई है।

प्राचीन भारतीय नारी__प्राचीन भारतीय समाज में नारी जीवन के स्वरूप पर विचार करें तो हमें जानकारी प्राप्त होती है कि वैदिक काल में नारी को कुछ खास महत्वपूर्ण स्थान(सम्मान) प्राप्त नहीं था  जैसेेे_सीता।

मध्य काल में नारी__ मध्य युग के आते-आते नारी की सामाजिक स्थिति दयनीय बन गई। भगवान बुद्ध द्वारा नारी को सम्मान दिए जानेेे पर भी भारतीय समाज में नारी केे गौरव का ह्रास होने लगा था। फिर भी वह सामाजिक कार्यों में पुरुषों केेेेेेे समान ही भाग लेती थी। उसका सहभागिनी और समानाधिकारिणी रूप पूरी तरह लुप्त नहीं हो पाया था। इसी बीच भारत पर मुगलों का आक्रमण हुआ। हिंदुओं के अंतिम शासक पृथ्वीराज चौहान की पराजय हुई और यहीं से नारी जीवन की करुण गाथा प्रारंभ हो गई। मुगल शासकों की काम लोलुप दृष्टि से नारी को बचाने के लिए प्रयत्न की जाने लगे। परिणामस्वरूप उसका अस्तित्व घर की चहारदीवारी तक ही सिमट कर रह गया। वह कन्या रूप में पिता पर, पत्नी के रूप में पति पर, और मां के रूप में पुत्र पर आश्रित होती चली गयी। यद्यपि इस युग में कुछ  नारियां, अपवाद रूप में, शक्ति संपन्न एवं स्वावलम्बी भी हुई, किंतु सामान्य नारी दृढ़ से दृृढ़तर बंधनों में जकड़ती चली गयी ‌‌‌‌। फलस्वरूप शक्ति-स्वरूपा नारी 'अबला' बनकर रह गयी__  
 "अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी।"__मैथिलीशरण गुप्त (राष्ट्र कवि)

भक्ति काल में नारी जगजीवन के लिए इतनी तिरस्कृत, क्षुद्र और उपेक्षित बन गयी थी कि कबीर, सूरदास, तुलसीदास जैसे महान कवियों ने उनकी संवेदना और सहानुभूति में दो शब्द तक नहीं लिखे। कबीर ने नारी को 'महाविकार', 'नागिन' आदि कहकर उसकी घोर निंदा की, तो तुलसीदास ने नारी को गँवार, शूद्र, पशु के समान ताड़ना का अधिकारी कहा__
"ढोल गँवार शूद्र पशु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी।"
मध्य युग में नारी खिलौना बन गई थी। उसकी नियति पुरुष की प्यार तथा दुत्कार की झटकोले खाती रहती थी।


आधुनिक नारी__ आधुनिक काल के आते आते नारी चेतना का भाव उत्कृष्ट रूप सेेेे जागृत हुआ। युग युग की दासता से पीड़ित नारी के प्रति एक व्यापक सहानुभूूूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाने लगा। महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिबा फुले, डॉ. भीमराव आंबेडकर, बंगाल में राजा राममोहन राय, उत्तर भारत में महर्षि दयानंद सरस्वती ने नारी को पुरुषों के अनाचार की छाया से मुक्त करानेेे को क्रांति का बिगुल बजाया। अनेक कवियों की वाणी भी दुुःखी नारियों की सहानुभूति के लिए फूट निकली। कविवर सुमित्रानंदन पंत ने तीव्र स्वर में नारी स्वतंत्रता की मांग की__"मुक्त करो नारी को मानव, चिर वन्दिरी नारी को। युग युग की निर्मम कारा से, जननी,सखी प्यारी को।।"
आधुनिक युग में नारी को विलासिनी और अनुचरी के स्थान पर ममतामयी माँ, सहचरी और प्रेयसी के गौरवपूर्ण पद प्राप्त हुए। नारियों ने सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक सभी क्षेत्रों में आगे बढ़कर कार्य किया। सावित्रीबाई फुले (प्रथम महिला शिक्षिका), महादेवी वर्मा, बहन कुमारी मायावती, सुभद्रा कुमारी चौहान, इंदिरा गांधी, सरोजिनी नायडू, हिमा दास, पीटी उषा, मिताली राज आदि के नाम विशेष सम्माननीय हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने नारियों की स्थिति सुधारने के लिए अनेक प्रयत्न किए हैं। हिंदू विवाह और कानून में सुधार करके (महात्मा ज्योतिबा फुले, डॉ. भीमराव अंबेडकर_हिंदू कोड बिल) उसने नारी और पुरुष को सामान भूमि पर लाकर खड़ा कर दिया। दहेज विरोधी कानून बनाकर उसने नारी की स्थिति में और भी सुधार कर दिया। सामाजिक एवं आर्थिक स्वतंत्रता ने उसे भोगवाद की ओर प्रेरित किया है। आधुनिकता की मोह में पड़कर आज वह पतन की ओर जा रही है। नारी सुलभ कोमलता, दया, ममता, करूणा आदि भावनाओं को त्याग कर फूल-फूल का रस लेने वाली तितली का रूप धारण करने में उसे अधिक संकोच नहीं हो रहा है।


नारियों/स्त्रियां/औरतों/मां पर अनमोल विचार__
* जिस घर में पुरुष शिक्षित होता है
उस घर में एक ही सदस्य शिक्षित होता है, परंतु जिस घर में महिला शिक्षित हो जाती है, उस घर में सारा परिवार शिक्षित हो जाता हैै।__महात्मा ज्योतिबा फुले (राष्ट्रपिता)

* सभी प्राणियों में मनुष्य श्रेष्ठ है, और सभी मनुष्यों में नारी श्रेष्ठ हैैैै, स्त्री और पुरुष जन्म सेेे ही स्वतंत्र हैं, इसलिए दोनों को सभी अधिकार सामान रूप सेेेे भोगने का अवसर मिलना चाहिए। _राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले।

* मैं समझता हूं कि किसी देश की उन्नति में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका महिलाओं की ही होती है।_ज्योतिबा फुले (राष्ट्रपिता)


* पहला कार्य पढ़ाई, फिर वक्त मिले तो खेलकूद, पढ़ाई से फुर्सत मिले तभी करो घर की साफ सफाई चलो,(मां/बहन/नारी) अब पाठशाला जाओ।_भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले


* शिक्षित स्त्री पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्भर होती है।

* स्त्रियां पुरुषों से अधिक बुद्धिमान होती हैं, क्योंकि वे पुरुष से कम जानती हैं, किंतु उससे अधिक समझती हैं।__जेम्स स्टीफेंस।

* जिस घर-परिवार, समाज और देश में स्त्रियों/औरतों का सम्मान नहीं होता है, उस घर परिवार, समाज और देश का पतन निश्चित है।

* कुछ लोग कहते हैं कि औरतों का कोई घर नहीं होता है, लेकिन मेरा यह मानना है कि औरतों के बिना कोई घर, घर नहीं होता।

* नारी सदैव अजेय रही है।__महादेवी वर्मा।

* नारी का सम्मान एक सभ्य परिवार, समाज और देश की पहचान है।

* औरत कोई खिलौना नहीं होती, घरवाले तो प्यार से ही गुड़िया कहते हैं।

* प्रत्येक देश के दो पंख होते हैं एक नारी और दूसरा पुरुष.... देश की उन्नति एक पंख से उड़ान भरने पर नहीं हो सकती।

* समाज की वास्तविक वास्तुकार महिलाएं हैं।

* नारी को अबला कहना उसका अपमान करना है।

* औरतों में सहनशक्ति पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा होती है।

* महिला सशक्तिकरण (महिलाओं को सभी अधिकार) भारतीय संविधान रचयिता डॉ. भीमराव अंबेडकर की (हिंदू कोड बिल, संविधान)वजह से मिले हैं।



उपसंहार__ उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है की नारी की विकास यात्रा आज विविध रूपिणी रही है। उसका मंगलकारी रूप वंदिनीय रहा है। हमारा विश्वास है कि भारतीय नारी अपने गौरव, उज्ज्वल चरित्र की गरिमा, उदान्त आदर्शों की प्रतिष्ठा को कायम रखेगी।
जिस समाज में नारी के सम्मान होता है वहां समता, एकता तथा समृद्धि विद्यमान रहती है। वह मात्र भोग की वस्तु नहीं है, राष्ट्र तथा समाज की प्रेरित शक्ति है। वह अखंड शक्ति का स्रोत है, दिव्यता तथा भव्यता की साकार प्रतिमा है। जिस देश में नारी को सम्मान मिलता है, उस देश की तरक्की सबसे ज्यादा होती है। नारी का सम्मान मानव के उत्थान में सहभागी है। श्रद्धा की प्रतिमूर्ति भारतीय नारी निश्चय ही जन जीवन में अमृत की धारा प्रभावित करेगी__
"नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग-पग-तल में।
पीयूष-स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।।"

Written by 📙✍️ sanghpriya Gautam