डॉ. भीमराव अम्बेडकर के ‘समतामूलक समाज’ पर एक निबन्ध लिखिए। b.a. 3rd year sociology question answer

प्रश्न– भीमराव अम्बेडकर के ‘समतामूलक समाज’ पर एक निबन्ध लिखिए।

प्रश्न – समतामूलक समाज क्या है? इसकी विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न – समतामूलक समाज की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।

प्रश्न – समतामूलक समाज की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
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उत्तर— डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारतीय समाज में सामाजिक न्याय के साथ ही साथ एक समतामूलक समाज की अवधारणा प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया है। डॉ. भीमराव अंबेडकर का कहना है कि समाज में व्यक्ति के लिए सामाजिक न्याय जितना आवश्यक है उतना ही आवश्यक है समतामूलक समाज। उन्होंने स्पष्ट किया कि सामाजिक न्याय तभी सफल हो सकता है जब समाज में समानता हो। समतामूलक का तात्पर्य है जहाँ सभी व्यक्ति समानता में विश्वास करते हों। समतामूलक समाज का आशय है समाज के हर वर्ग को न्यायसंगत समाज मिले अर्थात् एक ऐसा समाज जहाँ पर जाति, धर्म, शिक्षा आदि किसी भी आधार पर किसी भी प्रकार का समाज में भेदभाव नहीं होना चाहिए। सर्वप्रथम समतामूलक समाज की अवधारणा गौतम बुद्ध ने रखी थी।
     डॉ. अंबेडकर एक ऐसे विश्व के निर्माण में विश्वास रखते थे जिसमें मनुष्य की गरिमा, अस्मिता और स्वाभिमान बना रह सके और उसे जातीय आधार पर न बाँठकर मानवीय आधार पर एकीकृत किया जा सके। आपने हिन्दू धर्म में असमानता को लेकर स्वतंत्रता का भी विश्लेषण किया है और बताया कि भारतीय जाति-व्यवस्था में जीवन-वृति को चुनने की स्वतंत्रता नहीं थी। डॉ. अंबेडकर का कहना था कि “नागरिकों के सामाजिक अधिकार जितने अधिक समान होंगे उतनी ही अधिक वे स्वतंत्रता का प्रयोग कर पायेंगे। व्यक्ति की आर्थिक सुरक्षा के लिए आवश्यक है उसे व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। यदि व्यक्ति को रोजगार की स्वतंत्रता नहीं मिलती है तो संभव है कि वह मानसिक और शारीरिक यातनाओं का शिकार हो जाये जो स्वतंत्रता की मूल भावना के विपरीत है। इसके लिए सभी को ज्ञान और शिक्षा प्राप्ति का अधिकार होना चाहिए।”
       डॉ. अंबेडकर का मत था कि हिंदू समाज का पुनर्गठन समता की नींव पर किये बिना उनकी उन्नति नहीं होगी। समानता लोगों को एकता के सूत्र में बाँधने में सहायक होती है। भ्रातृत्व वह आदर्श है जो स्वतंत्रता और समानता को संभव बनाता है।
       डॉ. अंबेडकर की आदर्श समाज-व्यवस्था का केन्द्र व्यक्ति है। उनका मानना था कि व्यक्ति समाज का दास नहीं बल्कि समाज का निर्माता है। समाज, राज्य, आर्थिक एवं धार्मिक तंत्र व्यक्ति के लिए है न कि व्यक्ति उनके लिए है। आपकी (डॉ. अंबेडकर) दृष्टि में आदर्श समाज व्यवस्था वह व्यवस्था है जो सामाजिक प्रजातंत्र के सिद्धांतों पर आधारित हो अर्थात् स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व पर आधारित समाज व्यवस्था को ही डॉ. अंबेडकर ने समतामूलक समाज की संज्ञा दी है।
       समता के बारे में डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट किया है कि समाज में सभी मनुष्य (मानसिक और शारीरिक शक्ति में) समान नहीं होते हैं लेकिन फिर भी उन्होंने वैचारिक और व्यावहारिक आधार पर समता का प्रतिपादन किया है। वह समता को मानवीय आधार पर उचित मानते थे। प्रत्येक व्यक्ति को आगे बढ़ने का अवसर दिया जाना चाहिए। डॉ. अंबेडकर ने ‘प्राथमिकता युक्त समता’ की बात कही है। प्राथमिकता युक्त समता से उनका तात्पर्य ऐसे व्यक्तियों को सुविधाएँ देने में प्राथमिकता बरते जाने से रहा है जो साधनहीन हैं और जो बिना सुविधाओं के आगे नहीं बढ़ सकते।
     समतामूलक समाज से तात्पर्य एक ऐसे समाज से है जिसमें समता अर्थात् समानता के समान अवसर हों। समान अवसरों से डॉ. अंबेडकर का तात्पर्य यह था कि सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक आदि क्षेत्रों में जिस भी व्यक्ति को सुविधाएँ चाहिए उसे वे सभी सुविधाएँ मिलनी चाहिए। यहाँ पर व्यक्ति को उनकी जरूरत के लिये मिलने वाली सुविधाओं में प्राथमिकता का आधार व्यक्ति की जाति के स्थान पर व्यक्ति होना चाहिए और व्यक्ति भी वह, जो वास्तव में जरूरतमंद हो। जब समाज में जरूरतमंद व्यक्ति को उसकी आवश्यकता की पूर्ति हेतु सुविधाएँ मिलेंगी तो वह स्वयं को सशक्त बना सकेगा। समाज में व्यक्ति के साथ समानता का व्यवहार हर स्तर पर होना चाहिए। आर्थिक-स्तर पर सभी व्यक्तियों को यदि समान अवसरों की उपलब्धता मिले तो समाज में आर्थिक असमानता नहीं रहेगी।
     समतामूलक समाज की विशेषताएँ— समतामूलक समाज की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं–
(1) सभी व्यक्तियों को अवसरों में समानता का अवसर मिले।
(2) सभी व्यक्तियों की सामाजिक प्रस्थिति समान हो।
(3) सभी व्यक्तियों को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और न्यायिक अधिकारों की समानता हो।
   डॉ. अंबेडकर के अनुसार समतामूलक समाज वह है जिसमें रहने वाले सभी व्यक्तियों को अवसरों की समानता का अवसर मिले अर्थात् नैतिक रूप से उन्हें प्रतिष्ठा, गौरव, सम्मान में समानता मिले। उनके साथ किसी भी प्रकार से जाति, प्रजाति, धर्म, शिक्षा के आधार पर भेदभाव न हो। डॉ. अंबेडकर ने समतामूलक समाज के निम्नलिखित स्तर स्पष्ट किए हैं–
(1) प्रारम्भिक भेदभाव— समाज में प्रारम्भिक स्तर पर होने वाले किसी भी प्रकार के भेदभाव चाहे वे यांत्रिक से हों या सामाजिक रूप से, समतामलक समाज में स्वीकार नहीं किए जाते हैं। समाज में किसी भी परिस्थिति में समानता का मूल्य करना उचित नहीं है अर्थात् सभी परिस्थितियों में सभी को समान रूप से देखना चाहिए।
(2) परिस्थितियों की समानता— यदि कोई समाज औपचारिक रूप से अवसरों की समानता को संतुष्ट कर रहा है तो ऐसे समाज में वे व्यक्ति को सामर्थ्यहीन हैं उन्हें भी इस प्रकार के अवसरों की उपलब्धता प्रदान करना समतामूलक समाज का दायित्व है। परिस्थितियों की समानता की चर्चा करते हुए डॉ. अंबेडकर ने जॉन लॉक के सिद्धान्त का उदाहरण देते हुए कहा कि समाज में सभी व्यक्तियों को जीने का नैतिक अधिकार होना चाहिए। प्राकृतिक अधिकारों के अंतर्गत समाज में सभी व्यक्तियों को अपनी-अपनी सांस्कृतिक राय होनी चाहिए। जॉन लॉक की भाँति कार्ल मार्क्स के समान अधिकारों को भी डॉ. अंबेडकर ने भी स्वीकार किया है और कहा — ‘समतामूलक समाज वह समाज है जिसमें किसी भी प्रकार से कोई भी वर्ग न हो’ अर्थात् वर्गहीन समाज की मार्क्स की कल्पना को डॉ. अंबेडकर ने अपने समतामूलक समाज में शामिल किया है।
(3) अवसरों की समानता— डॉ. अंबेडकर ने बताया है कि पारम्परिक भारतीय समाज में उच्च जाति के व्यक्तियों को बिना किसी योग्यता के ही जन्म से ही उच्च अवसर प्राप्त हो जाते हैं। उच्च जाति परिवार में माता-पिता के आधार पर बच्चों को भी उच्चता के अवसर स्वयंमेव मिल जाते हैं। इसी भेदभाव के कारण डॉ. अंबेडकर कहती हैं समाज में व्यापार प्रारंभ करने, शिक्षा पाने, नौकरी आदि के लिए जाति-धर्म या धन को महत्व न देते हुए बिना किसी भेदभाव के समान अवसर प्रत्येक व्यक्ति को मिलना चाहिए जिससे कि समाज में योग्यता के आधार पर लोगों को अवसरों की प्राप्ति हो सके।

(4) समाज कल्याण का अवसर— डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट किया है कि समतामूलक समाज में प्रत्येक वर्ग कम को समाज कल्याण के अवसर मिलने चाहिए। आपका कहना था कि राज्य प्राकृतिक आपदा बाढ़, अकाल, महामारी आने पर जिस तरह कल्याणकारी मदद करता है वैसे ही मदद सामान्य परिस्थितियों में असहाय व्यक्तियों को मिलती रहनी चाहिए।

(5) योग्यता— समतामूलक समाज सभी सदस्यों को बिना किसी भेदभाव के स्वतंत्रता के आधार पर जीने का अवसर देता है अर्थात् व्यक्ति अपनी योग्यताओं के आधार पर जीवन वृति (व्यवहार) का चयन करें न कि जाति के आधार पर।

(6) प्राथमिकता— डॉ. अंबेडकर का कहना था कि समाज में प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को प्राथमिकता मिलनी चाहिए और प्राथमिकता का आधार व्यक्ति का कौशल होना चाहिए, जाति नहीं।

(7) सम्बन्ध की समानता— समाज के प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक रूप से स्तर समान हो। समाज के प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को एक-समान राजनैतिक अवसर मिलने चाहिए। समाज में आर्थिक रूप से सामान न होने वाले व्यक्तियों को भी प्रस्थिति में समान होना ही संबंधों की समानता है जो समतामूलक समाज की पहचान है।

(8) पर्याप्तता— डॉ. अंबेडकर ने अपनी समतामूलक समाज को स्पष्ट किया है कि समाज के सबसे धनाढ्य व्यक को जिस प्रकार से सभी प्रकार की पर्याप्तता होती है उसी प्रकार से समाज की सबसे गरीब व्यक्ति को भी सभी प्रकार की पर्याप्तता मिलनी चाहिए तभी समाज, समतामूलक समाज कहलायेगा।
डॉ.आंबेडकर ने अपने समतामूलक समाज की अवधारणा में स्पष्ट किया कि राज्य का यह दायित्व है कि वह समाज के प्रत्येक वर्ग का अधिक कल्याण कर सके अर्थात् समाज में सभी को समान अवसर प्राप्त हों जिससे अमीरी-गरीबी उच्चता-निम्नता की खाई समाप्त हो सके।

डॉ. अंबेडकर जानते थे कि संविधान में व्यवस्थाएँ कर देने मात्र से ही समस्या के निदान संभव नहीं होगा सदियों से समाज में रह रहे सवर्णों की मानसिकता में परिवर्तन लाना आवश्यक है ‌ उनके प्रति दमन, शोषण और असमानतावादी कार्य और व्यवहार समाप्त होने चाहिए। इसीलिए आपने समता मूलक समाज को भारत में स्थापित करने की अवधारणा पर जोर दिया है क्योंकि वर्षों पुरानी जाति-व्यवस्था के प्रभावस्वरूप हमें व्यक्तियों की मानसिकता में परिवर्तन लाना आवश्यक है और यह समाज-व्यवस्था में परिवर्तन लाकर ही किया जा सकता है।
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