मनुस्मृति क्या है? मनुस्मृति में स्त्री और शूद्रों (ST, SC, OBC) के बारे में क्या लिखा है? What is Manusmriti?

मनुस्मृति क्या है? मनुस्मृति में स्त्री और शूद्रों (ST, SC, OBC) के बारे में क्या लिखा है?
मनुस्मृति की हकीकत एक बार ध्यान से अंत तक जरूर पढ़ें🙏
मनुस्मृति का हिंदी संस्करण मिले तो आप अवश्य पढ़े और अपने समाज को पढ़ायें व समाज को जागरूक करें ताकि अपने समाज को पता चले कि वह शूद्र क्यों और कैसे, किन्होंने बनाया जबकि बचपन से पढ़ते आये हैं कि हमारे पूर्वज आदिवासी थे, पत्तो से शरीर ढंकते थे, कच्चे फल, कच्चा मांस खाते थे, अग्नि के अविष्कार के बाद पकाकर मांस खाते थे। तो फिर चतुर्वर्णीय व्यवस्था क्यों और कैसे आई? 

विश्व में प्रग्नेंट होने और जन्म लेने का प्रोसीजर जब एक जैसा है तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य पैदा होते ही उच्च कैसे?

अब आप जानिये मनुसमृति में क्या लिखा है :- 

बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने किसलिए "मनुस्मृति" जलायी थी ? उन्होने वेद और उपनिषद तो नहीं जलाये थे तो मनुस्मृति को ही क्यूँ जलाया? क्योंकि मनुस्मृति मज़दूरों, सर्वहारा वर्ग, महिलाओं, बच्चों, प्रकृति से जुड़े कृषिकार्यों वाले समुदायों को हजारों जातियों में बांटकर के जाति वर्ग की सत्ता बहाल करती है जिसके विरोध स्वरूप बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने मनुस्मृति को 25 दिसम्बर 1927 को जला दिया था।


क्या है यह मनुस्मृति ?

अग्निवायुरविभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्म सनातनम। दुदोह यज्ञसिध्यर्थमृगयु: समलक्षणम्।।.... (मनुस्मृति--1/13)

"जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न कर अग्नि आदि चारों ऋषियों द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराये उस ब्रह्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य और (तू अर्थात) अंगिरा से ऋग, यजु, साम और अथर्ववेद का ग्रहण किया।" वेदों के बाद मनुस्मृति को हिन्दुओं का प्रमुख ग्रंथ माना गया है। मनुस्मृति में वेदसम्मत वाणी का खुलासा किया गया है। वेद को कोई अच्छे से समझता या समझाता है तो वह है मनुस्मृति। यह मनुस्मृति पुस्तक महाभारत और रामायण से भी प्राचीन है, महाभारत और रामायण में ऐसे कुछ श्लोक हैं, जो मनुस्मृति से ज्यों के त्यों लिए गए हैं। इससे सिद्ध होता है कि "महर्षि मनु" श्रीकृष्ण और राम से पहले हुए थे और उनकी मनुस्मृति उन्हीं के काल में लिखी गई थी। तब कितनी पुरानी है मनुस्मृति ? मनुवादियों के जो तथ्य दिये जाते हैं उसके अनुसार लगभग 10000 वर्ष पूर्व "मनु" द्वारा 12 भागों की यह पुस्तक लिखी गई जो पूरी तरह ब्राम्हणवाद के व्यवस्था को पैदा करती थी। खुद देखिए कुछ उदाहरण इस प्रकार भी हैं।

 विवाह :- 

मनुस्मृति में आठ प्रकार के विवाह बताए गए हैं जिन्हें विभिन्न स्वभाव वाले लोगों के लिए अनिवार्य बताया गया है। ये 8 प्रकार के विवाह हैं : ब्रहम, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस, पिचास।
इनमें ब्रहम विवाह को सर्वोत्तम माना जाता है जबकि राक्षस और पिचास विवाह को निम्नतम माना जाता है। मनुस्मृति में ही लिखा है कि ब्राह्मण के लिए विवाह के शुरू के छह प्रकार यथा ब्रहम, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, असुर, गंधर्व उपयुक्त माने गए हैं तो क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र के लिए आर्ष, प्रजापत्य, असुर तथा गंधर्व विवाह उचित बताए गए हैं।

आतिथ्य व्यवस्था :-

●ब्राह्मण के घर केवल ब्राह्मण ही अतिथि माने जाएंगे। (और वर्ण की व्यक्ति नही)
●क्षत्रिय के घर ब्राह्मण और क्षत्रिय ही ऐसे दो ही अतिथि माने जाएंगे।
●वैश्य के घर ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य तीनो द्विज अतिथि हो सकते हैं, लेकिन ...
●शूद्र के घर केवल शूद्र ही अतिथि हो सकता है। (अध्यायः ३:श्लोक:११०) और कोई वर्ण व्यक्ति शुद्र के घर आ नही सकता...।

जाति व्यवस्था :- 

●ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य को यदि शूद्र अपशब्द बोले तो दंड स्वरूप उसकी ज़बान काट देनी चाहिए।
●तुच्छ वर्ण का होने के कारण उसे यही दंड मिलना चाहिए।
●यदि कोई शुद्र घमंड में आकर ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य के नामों को रखता है तो उसके मुँह पर लोहे की दस अंगुल जलती हुई कील ठोक देनी चाहिए।
●शुद्रों के धन को निर्भीक होकर ब्राम्हण ले सकता है क्योंकि शुद्र को धन रखने का अधिकार नहीं
●शुद्र यदि समर्थ है तब भी उसे धन रखने का अधिकार नहीं क्युँकि फिर वह ब्राह्मणों के लिए कष्ट बन जाता है।

 वर्ण (जाति) आधारित दैनिक कार्यों का विभाजन :- महातेजस्वी ब्रह्मा ने श्रृष्टि की रचना के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को भिन्न-भिन्न कर्म निर्धारित किया है।

●पढ्ना- पढाना, यज्ञ करना- कराना, दान लेना यह सब ब्राह्मण को कर्म करना हैं।     
            (अध्यायः१:श्लोक:८७)

●प्रजा रक्षण, दान देना, यज्ञ करना, पढ्ना...यह सब क्षत्रिय को करने के कर्म हैं। 
            (अध्यायः१:श्लोक:८९)

●पशु-पालन, दान देना, यज्ञ करना, पढ्ना, सूद(ब्याज) लेना यह वैश्य को करने का कर्म हैं। (अध्यायः१:श्लोक:९०)

●द्वेष-भावना रहित, आनन्दित होकर उपर्युक्त तीनो-वर्गो की नि:स्वार्थ सेवा करना, यह शूद्र का कर्म हैं। (अध्यायः१:श्लोक:९१)


 महिलाओं के संबंध में :-

स्त्रियों के संबंध में मनुस्मृति के प्रावधान इतने घटिया हैं कि उसे विस्तार से यहाँ लिखना संभव ही नहीं हो सकता, ब्राम्हणों क्षत्रिय और वैश्यों द्वारा शुद्र महिलाओं से शारीरिक संबंधों को दंडनीय करने के बजाए मनुस्मृति सराहना करता है तो समान वर्ण की महिलाओं के साथ ऐसा करने पर महिलाओं के पिता को धन देकर शारीरिक संबंधों को वैधता प्रदान करता है, शूद्र यदि ऐसा अपने जाति के ऊपर की महिलाओं के साथ करता है तो उसे मृत्युदंड के अतिरिक्त और कोई दंड नहीं दिया जा सकता। यह देखिये .......।

१- पुत्री, पत्नी, माता या कन्या, युवा, वृद्धा (बूढ़ी) किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक)

२- पति पत्नी को छोड़ सकता हैं, सूद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं, किसी भी स्थिति में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५)

३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रियाँ भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति, पुत्र, या पिता हैं। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६)

४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं ।....
तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं- "ढोर, चमार और नारी, ताड़न के अधिकारी."
   (मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९)

५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं।
(मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८)

६- स्त्रियां नर्कगामिनी होने के कारण वह यज्ञकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती। (इसी लिए कहा जाता है-"नारी नर्क का द्वार" है) (मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ )

७- यज्ञ कार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियों से किसी ब्राह्मण को भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियों के किए हुए सभी यज्ञ कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६)

८- मनुस्मृति के मुताबिक, स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली है। (अध्याय-२ श्लोक-२१४)

९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं। (अध्याय-२ श्लोक-२१४)

१० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली। (अध्याय-२ श्लोक-२१५.)

११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपता को नही देखती। (अध्याय-९ श्लोक-११४)

१२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं।(अध्याय-२ श्लोक-११५)

१३.- केवल शैया, आभूषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्ष्या खोर, दुराचारी हैं। (अध्याय-९ श्लोक-१७)

१४.- सुखी संसार के लिए स्त्रियों को कैसे रहना चाहिए ? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं-
●स्त्रीओ को जीवन भर पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए. - (मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५)

●पति सदाचारहीन हो,अन्य स्त्रियों में आशक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए.-     
   (मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४)

बलात्कार पर मनुस्मृति :-

ब्राह्मण अगर अवैधिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो केवल सर का मुंडन कराएँ।
क्षत्रिय अगर अवैधिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो १००० भी दंड करे।
वैश्य अगर अवैधिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये और १ साल के लिए कैद और बाद में देश निष्कासित।
शूद्र अगर अवैधिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये, उसका लिंग काट लिया जाये।
शूद्र अगर दूसरी जाति के साथ अवैधिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो उसका एक अंग काट कर उसकी हत्या कर दे।
(अध्यायः८:श्लोक:३७४,३७५,३७९)

हत्या के अपराध में कोन सी कार्यवाही हो ?:-

●ब्राह्मण की हत्या यानी ब्रह्महत्या महापाप। (ब्रह्महत्या करने वालो को उसके पाप से कभी मुक्ति नही मिलती)
●क्षत्रिय की हत्या करने से ब्रह्महत्या का चौथे हिस्से का पाप लगता हैं।
●वैश्य की हत्या करने से ब्रह्महत्या का आठ्वे हिस्से का पाप लगता हैं।
●शूद्र की हत्या करने से ब्रह्महत्या का सोलहवें हिस्से का पाप लगता हैं।(यानी शूद्र का जीवन बहुत सस्ता है) (अध्यायः११:श्लोक:१२६) ।

मनुस्मृति में गोमांस खाने की अनुमति :-

उष्‍ट्रवर्जिता एकतो दतो गोव्‍यजमृगा भक्ष्‍याः 
               (मनुस्मृति 5/18)
मेधातिथि भाष्‍यऊँट को छोडकर एक ओर दांवालों में गाय, भेड, बकरी और मृग भक्ष्‍य अर्थात खाने योग्‍य है।

संविधान के जनक बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने इसीलिए मनुस्मृति जलाकर इसका विरोध किया जिसे हिन्दू महासभा आजादी के बाद लागू करने के लिए प्रयासरत थी। दरअसल मनुस्मृति अब लगभग अप्रसांगिक है और डॉ अंबेडकर का बनाया भारत का संविधान ही सभी के लिए सर्वश्रेष्ठ है। यह भी सच है कि देश ना मनुस्मृति चाहता है ना शरियत । परन्तु संघ की सोच और गुपचुप तरीके से उसका "मनुस्मृति" के लिए प्रयास का परिणाम ही है कि सरस्वती शिशु मंदिर के विद्यार्थी उच्चतम न्यायालय में जज बनकर अपने फैसलों में "मनुस्मृति" को उद्धत करते हैं तो साजिशें दिखाई देती हैं और इसलिए "मनुस्मृति" क्या कहता है उसको सामने लाना हैं l 

आपने इसे पढ़ने के लिए समय दिया उसका बहुत बहुत धन्यवाद ।

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जय संविधान जय भीम जय विज्ञान🙏🙏

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