भारतीय संविधान का आर्टिकल (अनुच्छेद) 13 और 14 क्या है

📘✍️ भारतीय संविधान का आर्टिकल (अनुच्छेद) 13 क्या है?
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आर्टिकल 13 के अनुसार संविधान लागू होने की दिनाँक से पहले जितने भी धार्मिक ग्रन्थ, विधि कानून जो विषमता पर आधारित थे उन्हें शून्य' घोषित किया जाता है।
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📘✍️ व्याख्या : इस कानून के अनुसार बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने सिर्फ एक लाइन में ढाई हजार सालों की उस व्यवस्था और उस कानून की किताबों को शून्य घोषित कर दिया जो इंसानों को गुलाम बनाने के लिए इस्तेमाल की जा रही थी।
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📘✍️ जैसे : संविधान लागू होने से पहले भारत में मनुस्मृति का कानून लागू था। मनुस्मृति के अनुसार भारत के शूद्र, अति शूद्र और महिलाओं को शिक्षा का अधिकार, संपत्ति का अधिकार नहीं था। इसके अलावा मनुस्मृति के कानून के अनुसार शूद्र वर्ण को सिर्फ ब्राह्मणों की निस्वार्थ भाव से सेवा करने के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था और अतिशूद्र लोगों को पानी पीने तक का अधिकार नहीं था। यह विषमता वादी कानून इतनी कठोरता से लागू था जिसे पढ़कर बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर जी का हृदय कांप उठा था, बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने इस मनुस्मृति के कानून का अध्ययन किया तो पाया कि भारत की महिलाएं दोहरी गुलामी और सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु ही समझा जाता था, इसके अलावा 'सती प्रथा' , 'बाल विवाह', 'बेमेल विवाह' , 'वैधन्य जीवन', 'मुंडन प्रथा' आदि क्रूर प्रथाएं लागू थी।
यह प्रथा इसलिए लागू की गई ताकि ब्राह्मणों द्वारा निर्मित जाति व्यवस्था मजबूत बनी रहे और शूद्र अति शूद्र लोगों की गुलामी मजबूत बनी रहे, 19वीं सदी में ज्योतिराव फुले, सावित्री बाई फुले, विलियम बैटिंग, लार्ड मैकाले आदि विद्वानों ने अपने- अपने स्तर पर बहुत कोशिश की इस व्यवस्था को खतम करने की और राष्ट्रीय स्तर पर बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने अपनी विद्वता के दम पर *25 दिसंबर 1927 को इस मनुस्मृति नामक विषमतावादी जहरीले ग्रंथ को आग लगा दी* और अछूत लोगों को महाड में पानी पीने का अधिकार दिलवाया,  इसके बाद बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने पूरे भारत में घूम-घूम कर साइमन कमीशन को मनुस्मृति से प्रभावित शूद्र अति शूद्र लोगों की वास्तविक स्थिति का परिचय करवाया। 1931-32 में बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर जी ने इन 90% लोगों को वोट का अधिकार दिलवाया, सबके लिए प्रतिनिधित्व का अधिकार, विधिमंडल में उचित प्रतिनिधित्व और शिक्षा का दरवाजा राष्ट्रीय स्तर पर सबके लिए खुलवाया, जब संविधान लिखने की बात आई बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने ब्राह्मणवादी तमाम शक्तियां कानून और धर्म ग्रंथ को, जो इंसान को इंसान नहीं मानते थे, महज एक लाइन में शून्य घोषित कर दिया। इसी संवधान में बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने एससी, एस टी, ओबीसी और इनसे धर्म परिवर्तित माइनॉरिटी के लिए 69 आर्टिकल लिखकर इन्हें अलग अलग क्षेत्र में कुछ विशेषाधिकार दिए। इन्हीं 69 आर्टिकल की वजह से हमें मिले अधिकार ही इन ब्राह्मणवादी मनुवादी लोगों को बर्दाश्त नहीं हो रहे है और इन्हें खत्म करवाने के लिए रात दिन प्रोपेगंडा और 'धर्म' , 'भ्रम', 'पाखंड', 'अंधविश्वास' , 'साम', 'दाम', 'दंड', 'भेद' का इस्तेमाल कर रहे हैं और संसदीय बहुमत का गलत इस्तेमाल करते हैं। इसलिए ये लोग भारत में भाईचारा और एकता नहीं चाहते क्योंकि भाईचारा और एकता होने की वजह से इनकी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और हमारी व्यवस्था लागू हो जाएगी। 
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📘✍️ भारतीय संविधान का आर्टिकल (अनुच्छेद) 14 क्या है?
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 "आर्टिकल 14 के अनुसार ऐसा कोई भी कानून फिर से लागू नहीं होगा और ना ही बनेगा जो इंसानों के साथ विषमतावादी व्यवहार करें और उनको बद से बदतर जिंदगी जीने के लिए मजबूर करें" अर्थात भारत के सब नागरिक को समान मानते हुए ही विधि या कानून लागू या बनाए जाएं...
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📘✍️ व्याख्या : - भारत की संसद में चाहे किसी भी पार्टी का बहुमत हो,, तो इस बहुमत के आधार पर ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जाएगा जो पूर्व में मौजूद व्यवस्था को मजबूत बनाए और एक कम्यूनिटी को इस कानून के दम पर तानाशाही करने के लिए सरक्षण प्रदान करता हो, इसलिए आर्टिकल 14 सब भारतीयों के लिए एक समान विधि सहिंता उपलब्ध करवाता है और किसी भी विषमता वादी कानून बनाने के लिए रोकता है, चाहे संसद में कितना भी बहुमत क्यों ना हो।
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📘✍️ What is Article 13 of the Indian Constitution?
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According to Article 13, before the date of coming into force of the Constitution, all the religious texts and laws which were based on inequality are declared void.
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Explanation:  According to this law, Babasaheb Dr. Bhimrao Ambedkar ji, in just one line, declared void the system of two and a half thousand years and that law books which were being used to enslave human beings.
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📘✍️ What is Article 14 of the Indian Constitution?
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"According to Article 14, no law shall be re-enforced or made which treats human beings unequally and compels them to live the worst of their lives." That is, considering all the citizens of India as equal, the law or law should be implemented or made.
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