मैं हैरान हूँ
यह सोचकर कि किसी औरत ने क्यों नहीं उठाई उँगली?
तुलसीदास पर, जिसने कहा कि-
“ढोल,गवार,शूद्र, पशु,नारी ये सब ताड़न के अधिकारी।”
मैं हैरान हूँ,
किसी औरत ने क्यों नहीं जलाई ‘मनुस्मृति’पहनाई उन्हें
ग़ुलामी की बेड़ियाँ?
मैं हैरान हूँ,
किसी औरत ने क्यों नहीं धिक्कारा?उस ‘राम’को
जिसने अपनी गर्भवती पत्नी को परीक्षा के बाद भी निकाल दिया घर से धक्के मार के।
किसी औरत ने लानत नहीं भेजी उन सब को, जिन्होंने “औरत को समझ कर वस्तु” लगा दिया दिया था दाव पर होता रहा “नपुंसक” योद्धाओं के बीच समूची औरत जाति का चीरहरण।
मैं हैरान हूँ,
यह सोचकर किसी औरत ने किया नहीं संयोगिता अंबा - अम्बालिका के दिन दहाड़े, अपहरण का विरोध आजतक!
और मैं हैरान हूँ,
इतना कुछ होने के बाद भी
क्यों अपना ‘श्रद्धेय