राजनीति के बेमिसाल रसायनशास्त्री थे मान्यवर कांशीराम साहब

राजनीति के बेमिशाल रसायनशास्त्री थे मान्यवर कांशीराम साहब

भारत देश आजाद हो चुका था और साथ ही साथ हमारे पास दुनिया का सबसे विशाल लिखित संविधान था जिसमें समता,स्वतंत्रता,बंधुता,भाईचारा, सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक न्याय की कल्पना संविधान निर्माताओं ने कर ली थी। लेकिन वास्तव में यह कानूनी स्वतंत्रता दलितों के लिए खोखली स्वतंत्रता थी।इसलिए बाबा साहब कहा करते थे जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके किसी भी काम की नहीं है। भारत में हजारों सालों तक जातिवादी खड़ी व्यवस्था रही थी जिसे संविधान लागू होने के बाद भी देखा जा सकता है।
कांग्रेस सहित सभी पार्टियां दलित,पिछडो,मजलूमों का वोट लेकर सत्ता तक तो पहुंचती थीं लेकिन सत्ता के शीर्ष पर कोई सवर्ण ही पहुंचता था। हालांकि कुछ पदों पर दलितों को झुनझुना पकड़ाने के लिए और दलितों के हिमायती होने का दिखावा करने के लिए बाबू जगजीवन राम,रामदास अठावले, और रामविलाश पासवान जैसे लोगों को जगह दे दी जाती थी लेकिन मुख्य शक्ति बाले पदों पर कभी दलितों पिछड़ों को मौका नहीं दिया गया। जब भारत मे दलितों,पिछड़ों,पीड़ितों,शोषितों,मजलूमो,गरीबों का राजनीति में प्रतिनिधित्व लगभग शून्य था।
इसी समय मान्यवर कांशीराम साहब का जन्म एक सामान्य परिवार में 15 मार्च 1934 को खबासपुर रोपड़ पंजाब में हुआ। मान्यवर साहब सभी भाई बहनों में सबसे बड़े थे और सबसे पढ़े लिखे भी थे जिसकी वजह से उन्हें सन 1957 में survey of india में नौकरी मिल गई। लेकिन उस नौकरी में जॉब बांड की वजह से उन्होंने उस नौकरी को छोड़ दिया। 
इस नौकरी के छोड़ने से इस बात का प्रमाण है कि साहब आजाद ख्याली व्यक्ति थे उन्हें किसी के अधीन और दबाब मे काम करना पसंद नहीं था। इसके बाद मान्यवर साहब ने अगले ही वर्ष सन 1958 में DRDO में बतौर रिसर्च असिस्टेंट की नौकरी पुणे में शुरू की। 


इसी बीच साहब के साथ जो घटना घटी जिसने उनके अंदर भूचाल ला दिया। दिन था 14 अप्रेल अम्बेडकर जयंती का आफिस खुला था लेकिन उनके ही आफिस में चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी दीनाभाना उस दिन अम्बेडकर जयंती मनाने के लिए छुट्टी चाहता था उसे छुट्टी तो नही मिली लेकिन इसकी जगह उसे बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद जब यह बात कांशीराम साहब को पता लगी तो उन्होंने दीनाभाना को भरोसा दिलाया कि आपके हक की लड़ाई मैं लडूंगा। कांशीराम साहब अभी तक अम्बेडकर नाम से परिचित नहीं थे जब कांशीराम साहब ने दीनाभाना से अम्बेडकर जयंती के बारे में पूछा तो उन्होंने उन्हें बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी के बारे में बताया औऱ विस्तृत जानकारी के लिए उनके द्वारा लिखित 'anhilation of caste' नामक पुस्तक कांशीराम साहब को दी।
 जब कांशीराम साहब इस पुस्तक को पढ़ने के लिए बैठे तो उनके आंसू बहना शुरू हुए और इसी अवस्था मे वो रातभर इसी पुस्तक को पढ़ते रहे और उसी रात उन्होंने संकल्प लिया कि जब तक हम बहुजनों को राजनीति की मास्टर चाबी नहीं सौंप देंगे तब तक चैन की नींद नहीं सोऊंगा।
इसी के साथ ही यह भी निर्णय लिया कि
1.आज के बाद कभी भी में घर नहीं जाऊंगा, और न संपत्ति रखूंगा,न ही घर बनाऊंगा। 
2. गरीब,मजदूर,मजलूम ही मेरा परिवार हैं और वही मेरा घर है।
3. आज के बाद कभी भी विवाह संबंध, जन्मदिवस,अंतिम संस्कार आदि में भी नहीं जाऊंगा।
यहाँ तक कि वह अपने पिता के संस्कार में भी शामिल नहीं हुए थे। केवल एक किताब पढ़कर पढ़कर मान्यवर साहब के जीवन मे इतना भूचाल आया हालांकि बाद में उन्होंने काफी अध्धयन किया।
मान्यवर साहब कहा करते थे यदि बहुजन महापुरुषों के जीवन संघर्ष को पढ़कर आपका रोम रोम खड़ा हो जाए और दिल मे चिंगारी भड़क जाए आंदोलन करने की तो समझ लेना आप भी समाज के लिए कुछ कर सकते हैं वरना उस किताब को वहीं पढ़कर फेंक देना।
मान्यवर साहब कहते थे हमें जिस समाज की लड़ाई को लड़ना है उस समाज की समस्याओं को समझना होगा बिना समस्याओं को जाने हम उस समाज की लड़ाई लड़ ही नहीं सकते हैं।जब उन्होंने देखा समझा तो पता चला वह जिस जमात की लड़ाई लड़ रहे हैं वह जातिवाद,गरीबी,अशिक्षा से जूझ रही है लोगों के पास रहने को घर नहीं है खाने को अन्न नहीं है पहनने को कपड़े नहीं है।


 इस बीमारी का कारण जो साहब ने खोजा वह था राजनीति की मुख्यधारा से दूर होना। इसीलिए वह बहुजनों को हुक्मरान बनाने के लिए निकल पड़े औऱ बिना संसाधनों के ही संघर्ष करने लगे। उनके पास जाने के लिए टूटी साइकिल होती थी औऱ खाने के लिए लोगों द्वारा दिया हुआ खाना।
वह सन्यासी तो नहीं थे लेकिन उनका त्याग सन्यासियों से सहस्रों गुना अधिक था। पैसे के अभाव में साहब सेकेंड हैंड कपड़ा बाजार से कपड़े ले आते थे। एक समय तो सर्दी के समय में उनके पास पैसे नहीं थे और सर्दी अधिक थी तो समशान के पास से मरे हुए व्यक्ति का कोट पहनकर  सर्दी बचाई थी।
उन्होंने राजनीतिक जड़ें मजबूत हों उससे पहले गैर राजनीतिक जड़ें मजबूत करने का काम किया और बाबा साहब के मिशन पे बैक तो सोसाइटी के अनुसार बाबा साहब के परिनिर्वाण दिवस पर 06 दिसंबर 1978  को Backward and minority communities employees federation (BAMCEF) का गठन किया। यह एक गैर राजनीतिक संगठन था जो गाँव गाँव जाकर कैडर लगाकर लोगों को जागरूक करने का काम करता था और संगठन को आर्थिक सहायता करने का काम करता था। इसके बाद आपने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (DS-4) का गठन 1981 में किया और इसी समय साहब ने दो पहिए और  दो  पैरों का कमाल नाम से/(miracle of two feet and two wheels) से 3500 किमी की साइकिल यात्रा की और लोगों के अंदर जोश और उत्साह भर दिया साथ ही समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के अंदर तक राजनीति में हिस्सेदारी की संकल्पना को मजबूत कर दिया माना जाता है इस यात्रा में लगभग 03 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था।
साहब ने 14 अप्रेल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की जो देश की दलितों पिछड़ों की सबसे बड़ी पार्टी बनी और देश के सबसे बड़े सूबे की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री देने बाली पार्टी बनी।
शुरुआती सफर साहब के लिए बहुत ही चुनोतिपूर्ण रहा । साहब ने राजनीति के लिहाजे से उप्र की जमीन को ही सबसे उपजाऊ समझा क्योंकि उप्र भारत का अनुसूचित जाति जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है साथ ही पिछड़ी जाती के लोग भी बड़ी संख्या में है। हालांकि पंजाब में भी पार्टी का परफॉर्मेंस अच्छा रहा था।
पार्टी के गठन के बाद साहब ने लगातार उपचुनाव बहन जी को लड़वाये लेकिन शरुआती उपचुनावों बिजनोर हरिद्वार कैराना आदि जगह हार का सामना करना पड़ा। साहब कहते भी थे पहला चुनाव हारने के लिए ,दूसरा हरवाने के लिए और तीसरा जीतने बाला चुनाव होगा। सन 1989 में पहली बार बिजनोर से बसपा का खाता खुला और मा बहन जी सांसद बनकर लोकसभा पहुंची। इसी समय साहब इलाहाबाद से बी पी सिंह के सामने चुनाव लड़े जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद सन 1991 में साहब इटावा से पहली बार लोकसभा ने संसद चुनकर गए एवं 1996 में होशियारपुर से दूसरी बार लोकसभा में पहुंचे।
1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस में पूरा उप्र जल रहा था वर्तमान सरकारों की थू थू हो रही थी बीजेपी कांग्रेस कोई भी अच्छी स्थिति में नहीं थे। उस समय सपा ठीक ठाक स्थिति में थी बसपा के गठन के 9 साल बाद जब 1993 के विस आमचुनाव में बसपा सपा गठवन्धन से चुनाव लड़े तो बसपा ने शानदार प्रदर्शन किया और 67 सीटें लेकर आई। इस बीच ऐसे लोग भी विधायक  बनकर गए जिनके पास पहनने के लिए चप्पल तक न थीं जी हाँ में बात कर रहा हूँ कोंच सुरक्षित सीट से विधायक चुनकर गए चैनसुख भारती जी की। भारती जी जब विधायक बनकर गए तो उनके पैर में फटी चप्पल थी जिसे देख बहन जी ने कहा था अब आप चप्पल बदल लीजिये सरकार भी बदल गई है अब आपकी सरकार बन गई है। बाबा साहब और मान्यवर साहब का यही सपना था कि समाज के अंतिम पायदान का व्यक्ति भी राजनीति में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करे और अपने हक अधिकार के लिए खुद लड़ें। क्योंकि अधिकार मांगने से नहीं मिलते उन्हें छीनने पढ़ते हैं।  इधर भारती जी को न केवल विधायक बनाया बल्कि वह मंत्री भी बने और लगभग 14 दिनों तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री भी रहे थे।
1993 में सपा से गठबंधन टूटा और 1995 में बसपा ने पहली बार सरकार बनाकर अपने मुख्यमंत्री बनने के सपने को पूरा किया। इसके बाद मा बहन जी ने 1997 में और 2002 में अल्पकालिक सरकार बनी। लंबी बीमारी के बाद मान्यवर साहब 09 अक्टूबर 2006 को हमारे बीच मे नहीं रहे थे इसके 06 माह बाद ही 2007 में विस के आमचुनाव थे जिसमें उप्र की जनता ने 2007 में बसपा की  पूर्णबहुमत में सरकार बनाकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी थी।
मा बहन जी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठालने औऱ बहुजनों को हुक्मरान बनाने के लिए मान्यवर कांशीराम साहब ने जीवनभर सारे सुखों को त्यागकर मूवमेंट को आगे बढ़ाने का काम किया। जब वह लोगों से मिलने के लिए जाते थे वहीं रूखा सूखा जैसा भी खाना मिले उसी से पेट भरकर संगठनों को मजबूत करने का काम करते थे। चुनाव में उन्होंने एक वोट एक नोट का नारा दिया जिससे समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी लगे कि उसके पैसे से ही पार्टी चल रही है और वह पार्टी को अपनी विरासत समझकर उसकी हर परिस्थिति में सहयोग और रक्षा करे।
उन्हें पता था सत्ता संघर्षों का प्रतिफल है यदि हम संघर्ष नहीं करेंगे तो सत्ता का सुख नहीं भोग सकते हैं। और जब तक सत्ता हासिल नहीं होती है तब तक आपको न्याय मिलने बाला नहीं है उन्होंने कहा था यदि आपको न्याय चाहिए तो शासक बनिए। शासकों के साथ कभी अन्याय नहीं होता है।

आज मान्यवर कांशीराम साहब का परिनिर्वाण दिवस है  उनके परिनिर्वाण दिवस उन्हें यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि उनके द्वारा दी गई विरासत को अंतिम सांस तक नहीं जाने देना है और मान्यवर साहब के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए प्रतिवद्ध रहना है।


*रोहित गौर(सम्राट)*
*बहुजन आंदोलन का एक आम कार्यकर्ता*

जय भीम   जय कांशीराम   जय बहुजन समाज



 
कांशीराम साहब सुविचार :- 

जिसकी जितनी संख्या भारी,
उसकी उतनी हिस्सेदारी।

जल्द जल्द पैर बढ़ाओ,आओ-आओ
आज अमीरों की हवेली
 किसानों की होगी
पाठशाला धोबी,पासी,चमार, तेली 
खोलेंगे अंधेरे का ताला।

“अगर ना बिकने वाला नेता चाहते हो, तो ना बिकने वाला समाज बनाना पड़ेगा।”

सच्चे नेता समाज में खुशहाली लाते हैं और झूठे नेता समाज में बदहाली लाते हैं।

राजनीति चले न चले,
सरकार बने न बने
सामाजिक परिवर्तन
की गति किसी भी कीमत पर
रुकनी नहीं चाहिए।
                            ~ मान्यवर कांशीराम साहब