सालिम अली। सालिम अली की जीवनी।

                     पाठ -21
                  सालिम अली

आइए, सीखें : • पक्षी प्रेम और पक्षी संरक्षण  प्रेक्षण और परीक्षण का महत्व  जिज्ञासा और संकल्प की प्रेरणा  शब्द रचना अनेक शब्दों के लिए एक शब्द।

(पाठ परिचय : सालिम अली का पूरा नाम सालिमाई मुईज़ुद्दीन अब्दुल अली था। वे असाधारण पक्षी प्रेमी थे। बया पक्षी के अध्ययन के परिणाम के प्रकाशन से उन्हें बहुत प्रसिद्धि प्राप्त हुई। 'फिन' बया पक्षी की खोज उनकी महत्वपूर्ण देन है। उन्होंने 'बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स' लिखी, जिसमें पक्षियों के रोचक वर्णन के साथ उनके सुंदर चित्र भी थे। उन्होंने पक्षी प्रेमी एस. डिलन रिप्ले के साथ 'हैंड बुक ऑफ़ द बर्ड्स इंडिया एंड पाकिस्तान' लिखी। सालिम अली को पक्षी संरक्षण के लिए 'जे. पॉल वाइल्ड लाइफ कंजरवेशन पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। उन्हें कई राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार मिले।)


एक 10 वर्षीय बालक भाग कर आया और उसने वृक्ष के नीचे से घायल चिड़िया को उठा लिया। पक्षी गौरैया जैसा लगता था मगर यह देखकर बालक को आश्चर्य हुआ कि उसके गले पर पीला धब्बा था। दुविधा में पड़कर बालक उस पक्षी को अपने चाचा अमीरुद्दीन तैयबजी के पास ले गया और पूछा कि यह किस किस्म की चिड़िया है ? उसके चाचा इस बारे में कुछ नहीं जानते थे। लेकिन वह बालक को बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के ऑफिस में ले गए अपोलो स्ट्रीट पर एक बड़े भवन में एक छोटा सा कमरा। 
लड़के का परिचय डब्ल्यू. एस. मिलार्ड से, जो सोसाइटी के अवैतनिक सचिव थे कराया गया।
     
      मिलार्ड को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि एक भारतीय लड़का यह पूछ रहा है कि यह कौन-सी चिड़िया है। वह उसे कमरे में ले गए जहाँ तरह-तरह के मरे हुई पक्षियों के शरीरों में भूसा भर कर रखा हुआ था। एक के बाद दूसरे दराज खोले गए और तरह-तरह की चिड़िया दिखाई गईं। लड़के ने शायद यह कल्पना भी नहीं की थी कि पक्षी भी इतने प्रकार के होते हैं।

        वह आश्चर्यचकित-सा मुँह बाये देखता रहा। मिलार्ड ने एक दराज खोला इ
जिसमें तरह-तरह की गौरैयाँ रखी थीं। सावधानी से देखकर मिलार्ड ने एक मरा हुआ पक्षी उठाया। वह पक्षी बिल्कुल वैसा ही था, जैसा वह बालक अपने साथ लाया था। यह एक नर बया पक्षी था। वह केवल वर्षा ऋतु में ही पहचाना जा सकता है जब उसके गले पर पीला धब्बा उभर आता है।

           लड़के ने विस्मित होकर कहा, "मिलार्ड, मुझे नहीं पता था इतनी तरह के पक्षी होते हैं। मैं इसके बारे में सीखना चाहता हूँ।" मिलार्ड ने मुस्कुराकर सिर हिलाया। उन्होंने अब तक पक्षियों के बारे में जानने के लिए इस क्षेत्र के किसी वयस्क में भी विशेष उत्साह नहीं देखा था। उसके पश्चात् यह बालक प्रायः वहाँ आने लगा। वह सीखने लगा कि पक्षियों को कैसे पहचाना जाता है, मरे पक्षी को सुरक्षित रखने के लिए उनके शरीर को कैसे भरा जाता है।


        इस बालक का नाम था सालिम मुइज़ुद्दीन अब्दुल अली, जिन्हें सारा संसार असाधारण पक्षी प्रेमी सालिम अली के नाम से जानता है। उसका जन्म 12 नवंबर सन् 1896 में हुआ था। अपनी उम्र के नवें दशक में पहुँचकर भी पक्षियों में उनकी रुचि वैसी ही रही जैसी तब थी जब वह पहले-पहल मिलार्ड से मिले थे। उन्होंने पक्षियों के संरक्षण के लिए जो योगदान दिया है उसके लिए उन्हें जे. पॉल वाइल्ड लाइफ कंजरवेशन पुरस्कार मिला है। उन्हें कई राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार भी मिले।

            आश्चर्य की बात यह है कि सालिम अली के पास किसी विश्वविद्यालय की डिग्री नहीं थी। यद्यपि उन्होंने कॉलेज में प्रवेश लिया था मगर बीजगणित से डर कर पढ़ाई छोड़ कर भाग खड़े हुए। वह अपने भाई की वुलफ्रैम की माइनिंग में मदद करने बर्मा चले गए। लेकिन यहाँ भी वह असफल रहे। वह बर्मा के जंगलों में बुलफ्रैम के बदले पक्षियों की खोज करने लगे। घर लौटने पर उन्होंने प्राणीशास्त्र में एक कोर्स कर लिया और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के अजायबघर में गार्ड नियुक्त हो गए। वह इसका प्रशिक्षण लेने के लिए जर्मनी गए। 1 वर्ष बाद लौटने पर उन्होंने पाया कि उनकी नौकरी चली गई है और वह बेकार हो गए हैं। पैसे की कमी के कारण उनकी अनुपस्थिति में उनका पद ही समाप्त कर दिया गया था।

     सालिम अली विवाहित थे और उन्हें काम की सख्त जरूरत थी। लेकिन उन्हें ज्यादा से ज्यादा क्लर्क का काम ही मिलने की उम्मीद थी। उसके बाद उन्हें अपने मन चाहे काम 'बर्ड वाचिंग' के लिए अधिक समय नहीं मिल सकता था।

     सौभाग्य से उनकी पत्नी की कुछ निजी आई थी जिससे उन्हें बहुत सहारा मिला। उन्होंने बंदरगाह की पार किहीम में एक छोटा-सा घर ले लिया।

  वह घर पेड़ों के बीच बना हुआ था और वहाँ बड़ी शांति थी। जब वर्षा ऋतु आई तो सालिम अली ने देखा कि घर के पास ही बया पक्षियों ने एक पेड़ पर अपनी बस्ती बनाई है। तब बया पक्षी के बारे में लोगों को कुछ ज्यादा जानकारी नहीं थी। इन पक्षियों का अध्ययन करने का सालिम अली के लिए सुनहरा अवसर था। तीन-चार महीनों तक वे रोज घंटों बड़े धैर्य से इन पक्षियों को वहाँ कार्यरत देखते रहते। सन् 1930 में उन्होंने अपने इस अध्ययन के परिणाम को प्रकाशित किया तो उन्हें पक्षी विज्ञान (ऑरनिथोलॉजी) में खूब ख्याति मिली।

   जो महीनों उन्होंने बया पक्षियों का अध्ययन करते हुई बिताए थे। उससे उन्हें स्वयं परीक्षण और प्रेक्षण का महत्व समझ में आया और यह भी जान गए कि आँखें बंद करकेे किसी की बात को चाहे वह कितने भी प्रसिद्ध व्यक्ति ने क्यों न कही हो, स्वीकार नहीं करना चाहिए। वह अपने पर्यवेक्षण के परिणामों को बार-बार जाँचते थे और जल्दी किसी परिणाम पर नहीं पहुँचते थे। इससे उनकी विचारों और राय को आधिकारिक माना जाने लगा और इसी कारण कई बार उनका टकराव वरिष्ठ पक्षी प्रेमियों से हुआ।

    इसका प्रसिद्ध उदाहरण है रैकेट टेल्ड ड्रोगों में दुम के परों का निकलना। एक प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी ने कहा कि सालिम अली का प्रेक्षण गलत है। लेकिन अंततः सालिम अली ही ठीक निकले। उनकी फिन बया की खोज भी महत्वपूर्ण योगदान है। समझा जाता था कि 100 वर्ष से वह पक्षी विलुप्त हो गया है, मगर सालिम अली ने कुमाऊँ की पहाड़ियों में उसे खोज निकाला।

     अपने बचपन में सालिम अली को भारतीय पक्षियों पर एक अच्छी पुस्तक की कमी बहुत खलती थी। जो कुछ पुस्तकें उपलब्ध थीं, उनमें चित्र ही नहीं थी और इनमें केवल उबा देने वाला विस्तृत वर्णन था। ऐसी पुस्तकें किसी का पक्षियों के प्रति उत्साह बढ़ाने के स्थान पर उसे बिल्कुल समाप्त कर देती हैं, विशेषकर बच्चों में। सन् 1941 में उन्हें यह कमी पूरी करने की कोशिश की और बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स लिखी। उसने पक्षियों का रोचक और सुंदर वर्णन भी था और प्रत्येक जाति का सुंदर चित्र भी। किसी अजनबी के लिए भी उसे देखकर पक्षी पहचानना आसान हो जाता है। सन् 1948 में उन्होंने प्रसिद्ध पक्षी प्रेमी एस.डिलन रिप्ले के साथ एक अन्य महात्वाकांक्षी योजना पर कब आरंभ किया। दोनों ने 10 खंडों में एक पुस्तक लिखें "हैंड बुक ऑफ़ द बर्ड्स इंडिया एंड पाकिस्तान"। इस पुस्तक में इस उपमहाद्वीप में पाए जाने वाली सभी पक्षियों के बारे में जानकारी है। उन की आकृति, उनके पाए जाने की जगहें उनकी प्रजनन की आदतें, प्रव्रजन (माइग्रेशन) और यह भी कि उसके बारे में और क्या जानना बाकी है।

        सन् 1987 में सालिम अली की मृत्यु हो गई।

                          -दिलीप मधुकर साल्वी


इस पाठ के महत्वपूर्ण प्रश्न-

(क) सालिम अली का पूरा नाम क्या था ?
उत्तर- सालीमाई मुईज़ुद्दीन अब्दुल अली।

(ख) चाचा ने सलीम अली का परिचय किसने कराया था ?
उत्तर- डब्ल्यू.एस.मिलार्ड से।

(ग) अपोलो स्ट्रीट पर किस सोसायटी का कार्यालय था।
उत्तर- बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी का।

(घ) सालिम अली ने कौन-से पक्षी को खोज निकाला ?
उत्तर- फिन बया पक्षी को।

(ङ) सालिम अली को पक्षी संरक्षण के लिए कौन सा पुरस्कार मिला था ?
उत्तर- जे.पॉल वाइल्ड लाइफ कंजरवेशन पुरस्कार।

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Written by 📙✍️ Sanghpriya Gautam (Sangh7, Ranu)