बचपन में पैरों पर नहीं हो पाती थी खड़ी फिर भी हिम्मत दिखाकर ऐसे बनी संसार की सबसे तेज़ धाविका।( विल्मा रूडोल्फ़ की दर्द भरी कहानी पढ़े .) पढ़िए विल्मा रूडोल्फ की जीवनी।

          विल्मा रूडोल्फ की जीवनी

 जिंदगी में संघर्ष और मेहनत करने वालों के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता, बशर्ते कोई भी काम सच्ची निष्ठा से किया जाए। वो कहतेे हैं कि यदि कोई काम सच्चे मन सेे किया जाए तो सारी कायनात उसेे पूरा करनेे में आपकी पूरी मदद करती  है।
विल्मा रूडोल्फ ऐसी ही शख्सियत थी जिन्होंने दिव्यांग (अपाहिज ) होने के बावजूद नामुमकिन शब्द को मुमकिन में बदल दिया था।
विल्मा रूडोल्फ का जन्म 1940 में अमेरिका के टेनेसी प्रांत के एक गरीब घर में हुआ था। इनकी मां घर घर जाकर काम करती थी तो पिता कुली का काम किया करते थे। एक दिन अचानक से विल्मा रूडोल्फ को पैरों में बहुत तेज दर्द होने लगा, जिसके बाद उनके परिवार वाले इलाज कराने के लिए अस्पताल ले गए, वहां जाकर उन्हें पता चला कि उनकी बेटी को पोलिया हो गया है और अब वह कभी चल नहीं पाएगी।
बचपन में जब विल्मा रूडोल्फ अपने भाई-बहनों को खेलती हुई देखती थी तो उन्हें काफी तकलीफ होती और कई बार रोने भी लग जाती थी वह अपनी मां से कहती हमें भी खेलना है तब उनकी प्यारी मां बड़े प्यार से कहती एक दिन ऐसा आएगा जब मेरी प्यारी बेटी अपने पैरों से दौड़ेगी, उनकी मां हमेशा उनका आत्मविश्वास बढ़ाया करती थी। 
विल्मा रुडोल्फ की मां की हालत पहले से खराब चल रही थी, उनके घर का गुजारा जैसे तैसे होता था, इसीलिए विल्मा रूडोल्फ को अच्छे अस्पतालों में इलाज कराने के लिए पैसे नहीं थे।
घर पर मां विल्मा रूडोल्फ को रोजाना एक्सरसाइज करवाती थी ताकि को पहले की तरह अपने पैरों पर खड़ी हो सके, लेकिन इतना आसान नहीं था। 2 साल तक यही क्रम चलता रहा और धीरे-धीरे उनके पैरों में जान आने लगी थी, और उन्होंने( विल्मा रुडोल्फ) फिर जिद करके ब्रेस  निकलवा दिए और चलना प्रारंभ कर दिया।
कई बार तो चलते-चलते गिर जाती थी तब भी विल्मा रूडोल्फ उस दर्द को सहन करती थी।
लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, और 13 साल की उम्र में अपने भाई बहनों के साथ खेला शुरू कर दिया था और फिर वह स्कूल जाया करती थी।
विल्मा रूडोल्फ अब धीरे-धीरे दौड़ने के प्रयास में जुट गई थी, लेकिन दौड़ते समय कई बार वह गिर जाती थी तब उनकी प्यारी मां मदद करने के लिए हाथ बढ़ाती थी और  प्यारी बेटी विल्मा रूडोल्फ फिर से प्रयास करने में जुट जाती।
एक बार स्कूल में खेल प्रतियोगिता रखी गई, तब उन्होंने दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया लेकिन वह सबसे अंतिम स्थान पर आई। लेकिन विल्मा रूडोल्फ ने हार नहीं मानी और लगातार दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेती रही। हर बार असफल होने के बाद आखिरकार एक ऐसा भी दिन आया जब वह दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने ग्रेजुएशन के लिए टेनेसी राज्य विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। यहां उनकी मुलाकात कोच एंडी टेंपल से हुई। विल्मा रूडोल्फ ने टेंपल से मिलने के बाद अपनी इच्छा बताई और कहा वह सबसे तेज धावक बनना चाहती हैं। जिसके बाद उनकी खोज टेंपल ने उन्हें ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया।
विल्मा रूडोल्फ ट्रेनिंग के दौरान काफी मेहनत की और उन्होंने अपनी प्रैक्टिस एक भी दिन मिस नहीं  होने दिया।
अपने मेहनत के दम पर आखिरकार उन्हें ओलंपिक में भाग लेने का मौका मिल ही गया। विल्मा रूडोल्फ का सामना एक ऐसी धाविका से था जिसे हराना बेहद ही मुश्किल था।
पहली रेस 100 मीटर की थी जिसमें विल्मा रूडोल्फ का सामना jutta heine से हुआ। जिसे विल्मा रूडोल्फ में हराकर स्वर्ण पदक जीता।
1960 में रोम में हुए ओलंपिक में वे पहली अमेरिकन महिला बनी जिन्होंने एक ही ओलंपिक में तीन गोल्ड मेडल जीते थे।
उन्होंने 100 200 और 400 रिले रेस जीती और दुनिया की सबसे तेज दौड़ने वाली महिला बनी।
विल्मा रूडोल्फ ने अपनी जीत का श्रेय हमेशा अपनी मां को दिया,उनका कहना था की अगर उनका हौसला उनकी प्यारी मां नहीं बढ़ाती और कदम से कदम मिलाकर नहीं चलती तो आज इस मुकाम पर कभी नहीं पहुंच पाती।
1944 में विल्मा रूडोल्फ ने पूरी दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
लेकिन उनकी कहानी हमारे लिए प्रेरणादायक है, क्योंकि जिस तरह उन्होंने दिव्यांग होने के बावजूद जो मुकाम हासिल किया वह बहुत ही मुश्किल था।



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