देवदासी की व्यथा

देवदासी की व्यथा ( लेखिका: पूनम लाल )

'देवदासियों की चीखों से गूँजते मंदिरों के गुम्बद'
लेखिका ✍️ #पूनम_लाल 

पढ़िए दर्दनाक वहसी प्रथा को 

यूँ तो मुझे आप सब देवदासी के नाम से पुकारते हैं, जिसका अर्थ “देवता की दासी”
यानी… ईश्वर की सेवा करने वाली पत्नी होता है..!!
पर यह सच से कोसों दूर है। कुछ ऐसे जैसे दिन में तपते सूरज के नीचे बिना किसी आश्रय के बैठकर आँखों को भींच (जोर से बंद करना) कर ये मानना कि “मैं चाँदनी की शीतलता महसूस कर रही हूँ“

इस झूठ को जीते हुए मुझे 30 साल से अधिक हो गए हैं पर मेरे जीवन की वह आखिरी बदसूरत शाम मैं आज भी नहीं भूली हूँ।

“आई!!! कोई आया है बाबा से मिलने”
“अरे देवा!!!” माँ आने वाले के चरणों में लेट गई थी... “आपने क्यूँ कष्ट किया??? संदेसा भिजवा देते, हम तुरंत हाजिर हो जाते”
तब तक बाबा भी आ गए थे। बाबा भी वही कह और कर रहे थेंं, जो माँ ने किया था।
आने वाले ने एक नज़र मुझे देखा और बोले ”बहुत भाग्यशाली हो। बड़े महंत ने तुम्हारी दूसरी बेटी को भी ईश्वर की पत्नी बनाने का सौभाग्य तुम्हें दिया है” यह सुन कर मैं भी प्रसन्न हो गई। इसका मतलब दीदी से मिलूँगी ! माँ और बाबा ने सारी तैयारी रात को ही कर ली जाने की।

अगली दोपहर हम मंदिर के बड़े से प्रांगण में थे। भव्य मंदिर और ऊपरी हिस्सा सोने से मढ़ा था।
माँ बाबा मुझे झूठ बोलकर छोड़, चुपके से चले गए थे। गर्भ गृह से एक विशालकाय शरीर और तोंद वाला निकला तो सभी लोग सिर झुका कर घुटने के बल थे। मुझे भी वैसा करने को कहा गया।

रात एक बूढ़ी के साथ रही मैं, अगली सुबह मुझे नहला कर दुल्हन जैसे कपड़े मिले पहनने को, जिसे उसी बूढ़ी अम्मा ने पहनाया जो रात मेरे पास थी।
अब मुझे अच्छा लग रहा था। सब मुझे ही देख रहे थे। मेरी खूबसूरती की बलाएँ ले रहे थेेे। मेरा विवाह कर दिया गया भगवान की मूर्ति के साथ, जिसे दुनिया पूजती है, अब मै उसकी पत्नी!! सोच कर प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती थी पूरे शरीर में।

मुझे रात दस बजे एक साफ सुथरे कमरे में। जहाँ पलंग पर सुगंधित फूल अपनी खुशबू बिखेर रहे थे। बंद कर दिया गया।

”आज ईश्वर खुद तेरा वरण करेंगे, ध्यान रखना!!! ईश्वर नाराज़ न होने पाएँ !!!” वही बूढ़ी अम्मा ने मेरे कमरे में झाँकते हुए कहा...पर अंदर नहीं आई।
एक डेढ़ घंटे बाद दरवाजा बंद होने की आहट से मेरे नींद खुली। मैं तुरंत उठ कर बैठ गई। सामने वही बड़े शरीर वाला था।
लाल आँखें और सिर्फ एक धोती पहने और भी डरा रहा था मुझे।
“ये क्यूँ आया है???” मन ने सवाल किया!!!!!!
“मुझे तो भगवान के साथ सोने के लिए कहा गया था”
सवाल बहुत थे पर जवाब एक भी नहीं था
वो सीधा मेरे पास आ कर बैठ गया, और मैं खुद में सिकुड़ गई।
मेरे चेहरे को उठा कर बोला “मैं प्रधान महंत हूँ इस मंदिर का, ऊपर आसमान का भगवान ये है ( कोने में रखी विष्णु की मूर्ति की तरफ इशारा करता हुआ बोला ) और इस दुनिया का मैं”
यह कह कर मुझे पलंग से खड़ी कर दिया और मेरी साड़ी खोल दी। मेरी नन्हीं मुट्ठियों में इतनी पकड़ नहीं थी कि मैं उसे मेरे कपड़े उतारने, नहीं.. नोंचने से रोक पाती। एक ही मिनट में मैं पूरी तरह नग्न थी और खुद को महंत कहने वाला भी।
उसनें खींच कर मुझे पलंग पर पटक दिया मेरे हाथों को उसके हाथ ने दबा रखा था। उसके भारी शरीर के नीचे मैं दब गई थी।
मेरे मुँह के बहुत पास आ कर बोला।

“...आज मैं तेरा और ईश्वर का मिलन कराऊँगा ईश्वर के साथ आज तेरी सुहागरात है और ये मिलन मेरे जरिए होगा इसलिए चुपचाप मिलन होने देना व्यवधान मत डालना”...!!"

मैंने बिना समझे सिर हिला दिया। महंत मुस्कुराया और फिर मेरी भयंकर चीख निकली। मैं दर्द से झटपटा रही थी। साँस नहीं लौटी बहुत देर तक। दुबारा चीख निकली तो महंत ने मेरा मुँह दबा दिया। बाहर ढोल मंजीरों की आवाजें आने लगीं। मैं एक हाथ जो छोड़ दिया था मुँह दबाने पर, मैं उस हाथ से पूरी ताकत लगा कर उस पहाड़ को अपने ऊपर से धकेल रही थी, पर सौ से भी ऊपर का भार क्या 11 साल की लड़की के एक हाथ से हटने वाला था ? मैं दर्द से बिलबिला रही थी पर वह रुकने का नाम नहीं ले रहा था। पूरी शिद्दत से भगवान को मुझसे मिला रहा था, पर उस समय और कुछ नहीं याद था सिर्फ दर्द, दर्द और बहुत दर्द था। मैंने नाखून से नोंचना शुरू कर दिया था। पर उसकी खाल पर कोई असर नहीं हो रहा था। मुझे अपने जाँघों के नीचे पहले गर्म गर्म महसूस हुआ और फिर ठंडा ठंडा , वो मेरी योनि के फटने की वजह से निकला खून का फौव्वारा था।
पीड़ा जब असहनीय हो गई, मुझे मूर्छा आने लगी और कुछ देर बाद मैं पूरी तरह बेहोश हो गई।
मुझे नहीं पता वो कब तक मेरे शरीर के ऊपर रहा, कब तक ईश्वर से मेरे शरीर का मिलन कराता रहा।

चेहरे पर पानी के छींटों के साथ मेरी बेहोशी टूटी। मेरे ऊपर एक चादर थी और वही बूढ़ी अम्मा मेरे घाव को गर्म पानी से संभाल कर धो रही थीं।
”तुुुुने कल महंत को नाखूनों से नोंच लिया ? समझाया था न तुझे, फिर???
दुःख और पीड़ा की वजह से शब्द गले में ही अटक गए थे। सिर्फ इतना ही कह पाई।
“अम्मा मुझे बहुत लगा था”
“दो दिन से ज्यादा नहीं बचा पाऊँगी तुझे” अम्मा बोली। “महंत को नाराज नहीं कर सकते, न तुम और न मैं” कह कर अम्मा मेरे सिर पर हाथ फेर कर चली गई।

आज भी उस रात को सोच कर शरीर के रोंये खड़े हो जाते हैं दर्द और डर से।
मेरी आँखें इस बीच मेरी बहन को ढूँढती रहीं..पर वो नहीं मिली…किसी को उसका नाम भी नहीं पता था क्योंकि विवाह के समय एक नया नाम दिया जाता है और उसी नाम से सब बुलाते है फिर,
इसके बाद मैं जब भी किसी नई लड़की को देखती मंदिर प्रांगण में … तो मैं मेरी उस रात के दर्द से सिहर जाती थी… डर और दहशत की वजह से सो नहीं पाती थी।

मैंने इसी बीच नृत्य सीखा… और भगवान की मूर्ति के समक्ष खूब झूम झूम कर नृत्य करती… साल में एक बार माँ बाबा मिलने आते… क्या कहती उनसे…वे स्वयं भी मुझे अब भगवान की पत्नी के रूप में देखते थे।
मैंने भी अपनी नियति से समझौता कर लिया था।

हमारे गुजारे के लिए मंदिर में आए दान में हिस्सा नहीं लगता था हमारा। नृत्य करके ही कुछ रुपए पा जाती हैं मेरी जैसी तमाम देवदासियाँ… जिसमें हमें अपने लिए और अपने छोडे हुए परिवार का भी भरण पोषण करना पड़ता है।

मेरे बाद कई लड़कियां आईं… एक के माँ बाप अच्छा कमा लेते थे पर भाई अक्सर बीमार रहता था इसलिए पुजारी के कहने पर लड़की को मंदिर को दान कर दिया गया ताकि बहन भगवान के सीधे संपर्क में रहे और उसका भाई स्वस्थ हो जाए…
एक और लड़की का चेहरा नहीं भूलता… उसकी बड़ी और डरी हुई आँखों का ख़ौफ मुझे आज भी दिखाई दे जाता है मैं जब जब अतीत के पन्ने पलटती हूँ।
जिस शाम उसका और महंत के जरिए भगवान से मिलन होना था… बस तभी पहली और आखिरी बार देखा था.फिर कभी नज़र नहीं आई वो।बहुत दिनों बाद मुझे उसी बूढ़ी अम्मा ने बताया था ( किसी को न बताने की शर्त पर ) कि उस रात महंत को उसका ईश्वर से मिलन कराने के बाद नींद आ गई थी तो वह उसके ऊपर ही सो गए थे. और दम घुट जाने से वह मर गई थी।
सुन कर दो दिन एक निवाला नहीं उतरा हलक से… लगा शायद मुझे भी मर जाना चाहिए था उस दिन तो रोज रोज मरना नहीं पड़ता।
हमें पढ़ने की इजाजत नहीं है… हमें सिर्फ अच्छे से अच्छा नृत्य करना होता था और रात में महंत के बाद बाकी पंडों और पुजारियों की हवस को भगवान के नाम पर शांत करना होता था।

हमें समय समय पर गर्भ निरोध की गोलियाँ दी जाती है खाने के लिए ताकि हमारा खूबसूरत शरीर बदसूरत ना हो जाए। फिर भी, कभी कभी किसी को बच्चा रुक ही जाता था ऐसे में यदि वह कम उम्र की होती थी तो उसका वही मंदिर के पीछे बने कमरे में जबरन गर्भपात करा दिया जाता था। यह गर्भपात किसी दक्ष डॉक्टर के हाथों नहीं बल्कि किसी आई (दाई) के हाथ कराया जाता था… किसी किसी के बारे में पता भी नहीं चल पाता था.. कभी 3 महीने से ऊपर का समय हो जाने पर गर्भपात न हो पाने की दशा में बच्चे को जन्म देने की इजाजत मिल जाती थी... बच्चा यदि लड़की होती थी तो इस बात की खुशी मनाई जाती थी मंदिर में शायद उन्हें आने वाली देवदासी दिखाई देती थी उस मासूम में।

मेरी जैसी एक नहीं हज़ारों हैं।
जब पुरी के प्रभू जगन्नाथ का रथ निकलता है तो मुझ जैसीे हज़ारों की संख्या में देवदासियाँ होती हैं जो ईश्वर के एक मंदिर से निकलकर दूसरे मंदिर जाने तक बिना रुके नृत्य करती हैं। हम सभी के दर्द एक हैं। सभी के घाव एक जैसे हैं, पर मूक और बघिर जैसे एक दूसरे को देखती हैं बस...!

मैं उनकी आँखों का दर्द सुन लेती हूँ और वे मेरी आँखों से छलका दर्द बिन कहे समझ लेती हैं।

यहाँ से निकलने के बाद हमारे पास न तो परिवार होता है…न ही कोई बड़ी धनराशि…और न कोई ठौर-ठिकाना जहाँ दो वक्त की रोटी और सिर छुपाने की जगह मिल जाए….नतीजा…हम एक दलदल से निकलकर दूसरे दलदल में आ जाती हैं…वहाँ हमारा #उपभोग ईश्वर के नाम पर महंत और पंडे करते थे….और यहाँ हर तरह का व्यक्ति हमारा कस्टमर होता है… न वहाँ सम्मान जैसा कुछ था… न यहाँ।
मुझ जैसी वहाँ ईश्वर के नाम की वेश्याएँ थीं…यहाँ सच की वेश्याएँ हैं… यहाँ पर 100 मे से 80 किसी समय देवदासियाँ ही थीं।

आज तमाम तरह के एनजीओ हैं पर किसी भी एन जी ओ की वजह से कोई भी लड़की इस नर्क से नहीं निकल पाई।
हजारों साल पहले धर्म के नाम पर चलाई गई ये रीति लड़कियों के शारीरिक शोषण का एक बहाना मात्र था जिसे भगवान और धर्म के नाम पर मुझ जैसियों को जबरन पहना दिया गया। एक ऐसी बेड़ी जिसको पहनाने के बाद कभी न खोली जा सकती है और न तोड़ी जा सकती है।

कहने को देवदासी प्रथा बंद कर दी गई है और यह अब कानून के खिलाफ है… पर ये प्रथा ठीक उसी प्रकार बंद है जैसे दहेज प्रथा कानूनन जुर्म है पर सब देते हैं… सब लेते हैं।
ये प्रथा वेश्यावृति को आगे बढ़ाने का पहला चरण है… दूसरे चरण वेश्यावृति में और कोई विकल्प न होने की वजह से मेरी जैसी खुद ही चुन लेती हैं।
यहाँ जवानी को स्वाहा करने के बाद बुढ़ापा बेहद कष्टमय गुजरता है देवदासियों का… दो वक्त का भोजन तक नसीब नहीं होता… जिस मंदिर में देव की ब्याहता कहलाती थीं उसी मंदिर की सीढ़ियों में भीख माँगने को मजबूर हैं… पेट की आग सिर्फ रोटी की भाषा समझती है… पर बुजुर्ग देवदासियाँ एड़ियाँ रगड़ कर मरने को लाचार हैं… कई बार भूख और बीमारी के चलते उन्हीं सीढ़ियों पर दम तोड़ देती हैं।

और हाँ...एक बात बतानी रह गई… वेश्याओं के बाज़ार में मुझे मेरी बड़ी बहन भी मिली… बहुत बीमार थी वो…पता चलने पर मैं लगभग भागती हुई गई थी उसकी खोली की तरफ…पर बहुत भीड़ थी उसके दरवाजे…” लक्ष्मी दीदी”.. कहते हुए मैं अंदर गई जो उसका निर्जीव अकड़ा हुआ शरीर पड़ा था
मर तो बहुत पहले ही गई थी वह भी बस साँसों ने आज साथ छोड़ा था।

छठीं सदी में शुरू यह प्रथा आज 21वीं सदी में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उड़ीसा में खूब फल-फूल रही है.
#अशम्मा जैसी 500 साहसी महिलाओं ने हैदराबाद के कोर्ट में इस बात के लिए रिट करी है कि ऐसे संबंधों से पैदा हुए बच्चों की शिक्षा का इंतजाम किया जाए और रहने के लिए हॉस्टल उपलब्ध कराया जाए अकेले #महबूबनगर में ऐसे बच्चों की संख्या 5000 से 10000 के बीच है… बच्चों का डीएनए टेस्ट करा कर पिता को खोजा जाए और उसकी संपत्ति में इन बच्चों को हिस्सा दिया जाए… पर जब तक कोर्ट का फैसला आएगा तब तक न जाने कितनी अशम्मा और न जाने कितनी मेरी जैसी इस दलदल में फँसी रहेंगी और घुट-घुट कर जीने के लिए मजबूर होती रहेंगी!!!

_ ✍️#पूनम_लाल

• यह आर्टिकल मैंने फेसबुक से कॉपी किया है 
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In English language by Google Translate.

Devadasi's agony (Author: Poonam Lal)

'The domes of the temples echoed with the screams of the devadasis'
Writer ️ #poonam_lal


You all call me by the name of Devadasi, which means "maid of God".
That is… a wife who serves God..!!
But this is far from the truth. Something like sitting under the scorching sun during the day without any shelter and clenching the eyes (closing forcefully) and believing that "I am feeling the coolness of the moonlight".

It's been more than 30 years since I lived this lie, but I still can't forget that last ugly evening of my life.

"I!!! Somebody has come to meet Baba"
"Oh god!!!" The mother lay down at the feet of the one who came... "Why did you bother??? Had sent the message, we would have been present immediately.”
By then Baba had also come. Baba was also saying and doing the same thing that Mother had done.
The one who came took a look at me and said, "Very lucky. The elder Mahant has given you the privilege of making your second daughter also the wife of God." I was also pleased to hear this. It means I will meet sister! Mother and Baba made all the preparations to be done at night itself.

The next afternoon we were in the large courtyard of the temple. The grand temple and the upper part were overlaid with gold.
Maa Baba left me lying and went away secretly. When a giant body and belly came out from the sanctum, all the people were on their knees with their heads bowed. I was asked to do the same.

The night I stayed with an old woman, the next morning I was given a bath and dressed like a bride, which was worn by the same old mother that I had that night.
I was feeling better now. Everyone was looking at me. They were taking the blessings of my beauty. I have been married with the idol of God whom the world worships, now I am his wife!! A wave of happiness used to run through the whole body.

Me in a clean room at ten o'clock. Where fragrant flowers were spreading their fragrance on the bed. Closed.

"Today God himself will bless you, take care!!! May God not be angry!!!" The same old Amma peeping into my room said...but didn't come inside.
After an hour and a half, I woke up to the sound of the door closing. I immediately got up and sat down. He was the one with the big body in front.
Wearing red eyes and just a dhoti was scaring me even more.
"Why did he come???" The mind asked!!!!!!
"I was told to sleep with God"
There were many questions but there was no answer
He came and sat down beside me, and I shrugged in myself.
Lifting my face said, "I am the head mahant of this temple, this is the Lord of the sky above (pointing to the idol of Vishnu placed in the corner) and I am of this world."
Saying this made me stand up from the bed and untied my sari. I did not have enough grip in my little fists that I could stop him from taking off my clothes, no... Within a minute I was completely naked and also about to call myself a Mahant.
He pulled me and slammed me on the bed. His hand was holding my hands. I was buried under his heavy body.
He came very close to my mouth and said.

"...today I will make the meeting of you and God, today is your honeymoon with God and this meeting will happen through me, so don't disturb the meeting silently"...!!"

I nodded my head without understanding. The Mahant smiled and then my fierce scream came out. I was shaking with pain. Couldn't breathe for a long time. When the scream came out again, the Mahant suppressed my mouth. The sound of drums started coming outside. On pressing the face that I had left, I was pushing that mountain with full force with that hand, but the weight of more than a hundred was going to be removed from one hand of an 11-year-old girl? I was crying in pain but he was not taking the name of stopping. I was meeting God with full devotion, but at that time I could not remember anything else, there was only pain, pain and a lot of pain. I started biting my nails. But there was no effect on his skin. I felt hot under my thighs first and then cold, it was a fountain of blood coming out of my vagina due to the rupture.
When the pain became unbearable, I started fainting and after some time I was completely unconscious.
I do not know how long he stayed on my body, for how long he kept meeting God with my body.

My unconsciousness broke with water splashing on my face. I had a sheet over me and the same old Amma was washing my wound with warm water.
"You nailed the Mahant yesterday? Was it explained to you, then???
The words were stuck in his throat because of sorrow and pain. I could only say that.
"Amma, I loved it"
"I won't be able to save you more than two days," said Amma. Saying "You can't offend the Mahant, neither you nor I" Amma walked away with her hand on my head.

Even today, thinking of that night, the hairs of the body stand in pain and fear.
Meanwhile, my eyes kept searching for my sister..but she could not be found.
After this, whenever I saw a new girl in the temple premises… I used to shudder with the pain of that night… I could not sleep because of fear and panic.

In the meantime, I learned to dance… and danced very loudly in front of the idol of God.
I too had compromised my destiny.
We did not take part in the donations that came to the temple for our sustenance. I get some money only by dancing.

Many girls came after me.
Don't forget another girl's face… I can still see the horror of her big and scared eyes when I turn the pages of the past.
The evening when she and the Mahant had to meet God… just then saw her for the first and last time. She was never seen again. After many days, the same old Amma told me (on condition of not telling anyone) that she Night Mahant had fallen asleep after meeting him with God, so he slept on top of him. And she died of suffocation.
After listening to it for two days not a single bite landed lightly… I felt that maybe I should have died too, that day I don't have to die every day.
We are not allowed to study… We just had to dance the best we could and after the Mahant in the night, the rest of the pandas and priests had to pacify the lust in the name of God.

We are given birth control pills from time to time to eat so that our beautiful body does not turn ugly. Nevertheless, sometimes someone had to stop the child, so if she was of a young age, she was forcibly aborted in the same room behind the temple. This abortion was not done at the hands of a skilled doctor but by the hand of a midwife. Permission was given to give birth to a child.
There are thousands like me, not just one.
When the chariot of Lord Jagannath of Puri sets out, there are thousands of devadasis like me who dance non-stop from one temple of God to another. We all have the same pain. Everyone's wounds are the same, but they look at each other like a mute and a deaf, just...!

I hear the pain in their eyes and they understand the pain that spills out of my eyes without saying.

After leaving here, we have neither family… nor any big money… nor any shelter where we can get bread for two times and a place to hide our heads…. As a result… we came out of one swamp and into another swamp. We are consumed there in the name of God by the Mahants and the pandas….and here every kind of person is our customer…there was nothing like respect…not here.
Like me, there were prostitutes in the name of God… here are the real prostitutes… Here 80 out of 100 were once devadasis.

Today there are all kinds of NGOs, but because of any NGO, no girl could get out of this hell.
Thousands of years ago, this ritual done in the name of religion was just an excuse for physical abuse of girls, which was forcibly worn by people like me in the name of God and religion. A chain that can never be opened or broken after wearing it.

To say that the devadasi system has been stopped and it is now against the law… but this practice is stopped in the same way as the dowry system is a crime by law, but everyone gives… everyone takes.
This practice is the first step to pursue prostitution… In the second stage, because of no other option in prostitution, she chooses herself like me.
Here, after sacrificing youth, old age passes very painfully. Understands… But the elderly Devadasis are helpless to die by rubbing their heels… Many times they die on the same stairs due to hunger and disease.

And yes…one thing remains to be told… I also found my elder sister in the prostitutes market… She was very ill… On coming to know, I almost ran towards her shell… but there was a lot of crowd at her door…” Lakshmi Didi”.
The death had gone long ago, that too only breath had left it today.

This practice, which started in the 6th century, is flourishing in the 21st century in Karnataka, Andhra Pradesh, Tamil Nadu, Maharashtra, Orissa.
500 courageous women like #Ashamma have writ in the court of Hyderabad to arrange for the education of the children born out of such relations and to provide hostels to live. Number of such children in #Mahbubnagar alone is 5000 to 10000 Between… Will be forced to live on suffocation!!!

_ ️#poonam_lal

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