b.a. 3rd year sociology question paper 2022

B.A. ( Third Year ) EXAMINATION,
               March/April 2022
                    SOCIOLOGY
                     Paper – I
BASIC OF SOCIOLOGICAL THOUGHT
             Time : Three Hours
Maximum Marks: 40 (For Regular Student)
        Minimum Pass Marks: 33%
नोट– सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
Attempt all questions.
                      खण्ड ‘अ’
                    (Section ‘A’)
                   लघु उत्तरीय प्रश्न
   (Short Answer Type Questions)
1. सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रत्येक प्रश्न दो अंक का है।                                                    2×5=10
Attempt all questions. Each question carries two marks.
(i)  ‘ श्रम विभाजन ’ को समझाइये।
 Explain the 'division of labour'.
अथवा (Or)
तीन स्तरों के नियम को समझाइये।
Explain law of three stages.

(ii) बेवर की सामाजिक क्रिया को परिभाषित कीजिये।
Define social action of Weber.
अथवा (Or)
वर्ग संघर्ष को परिभाषित कीजिए।
Define class struggle.

(iii) सन्दर्भ समूह का अर्थ बताइये।
Write the meaning of Reference Group.
अथवा (Or)
पायसन्स द्वारा प्रतिपादित सामाजिक व्यवस्था को परिभाषित कीजिए।
Define social system by Parsons.

(iv) सामाजिक न्याय को परिभाषित कीजिए।
Define Social Justice.
अथवा (Or)
संरक्षकता को परिभाषित कीजिए।
Define Trusteeship.

(v) संस्कृतिकरण से उत्पन्न कोई चार परिवर्तन लिखिए।
Write any four changes due to Sanskritization.
अथवा (Or)
आधुनिकीकरण से उत्पन्न कोई परिवर्तन लिखिए।
Write any four changes due to modernization.


                              खण्ड ‘ब’
                          (Section ‘B’)
                         दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
           (Long Answer Type Questions)

                      इकाई -I (Unit-I)
2. कॉम्टे द्वारा प्रस्तुत प्रत्यक्षवाद के सिद्धान्त को समझाये।                                           6/8
Explain the theory of positivism by Comte.
अथवा (Or)
सोरोकिन द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइये।
Explain the theory cultural change by Sorokin.

                        इकाई-II (Unit-II)
3. वेबर द्वारा ‘ आदर्श प्रारूप ’ को परिभाषित कीजिए। 6/8
Define ‘ Ideal type ’ by Weber.
अथवा (Or)
कार्ल मार्क्स द्वारा ‘ द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद ’ को समझाइये।
Explain ‘ Dialectical Meterialism ’ by Karl Marks.

                        इकाई-III (Unit-III )
4. पारसन्स द्वारा ‘ प्रतिमानित विकल्प ’ को परिभाषित कीजिए।                                                  6/8
Define ‘pattern variables’ by Parsons.
अथवा (Or)
मीड द्वारा प्रस्तुत ‘ स्व एवं पहचान ’ के सिद्धान्त को समझाइये।                                              6/8
Explain theory of “Self and Identity” by mead.

                        इकाई-IV ( Unit-IV)
5. राधाकमल मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत “मूल्यों के समाजशास्त्र” को समझाइये।                        6/8
Explain “Sociology of Value” by RadhaKamal Mukherjee.
अथवा (Or)
घुरिये द्वारा प्रस्तुत ‘ भारत विद्याशास्त्र ’ को परिभाषित कीजिए।
Define ‘Indology’ by Ghureye.

                           इकाई-V (Unit-V)
6. देसाई द्वारा प्रस्तुत भारत में राष्ट्रवाद की सामाजिक पृष्ठभूमि को समझाइये।                              6/8
Explain social background of Nationalism in India by Desai.
अथवा (Or)
योगेंद्र सिंह द्वारा प्रस्तुत  ‘ भारतीय परम्परा का आधुनिकीकरण’ को समझाइए।
Explain ‘Modernization of Indian tradition’ by Yogendra Singh.

प्रश्न.2. 
कॉम्टे द्वारा प्रस्तुत प्रत्यक्षवाद के सिद्धान्त को समझाइये।
उत्तर — कॉम्टे के चिन्तन का आधार केवल प्रत्यक्षवाद है। उनकी समस्त मान्यताओं के आधार में प्रत्यक्षवादी चिन्तन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उन्होंने सामाजिक घटनाओं का अध्ययन प्रत्यक्षवाद के द्वारा करने पर जोर दिया है। इस प्रकार प्रत्यक्षवाद कॉम्टे के समाजशास्त्र के अध्ययन की पद्धति है। कॉम्टे का कथन है कि, “यदि भविष्य में मानव ज्ञान का विस्तार होता है तो वह वैज्ञानिक पद्धति अर्थात् निरीक्षण, परीक्षण और तुलना के द्वारा ही संभव हो सकता है।” इसी वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर मानव समाज के सदस्यों में बौद्धिक तथा नैतिक एकता का विस्तार होगा इसके आधार पर मानव समाज का संगठन और पुनर्निर्माण करना संभव हो सकेगा।

कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद—  कॉम्टे के पूर्व सामाजिक घटनाओं का अध्ययन धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, नीति शास्त्र आदि के माध्यम से किया जाता है। कॉम्टे ने सामाजिक घटनाओं के अध्ययन को उक्त वर्णित विज्ञानों के दायरे से बाहर निकाल कर उनका वैज्ञानिक पद्धति से अध्ययन करने पर जोर दिया। सामाजिक घटनाओं की अध्ययन हेतु उन्होंने जो पद्धति अपनाई, वह प्रत्यक्षवाद है। इस प्रकार कॉम्टे के समाजशास्त्र का पद्धतिशास्त्रीय आधार प्रत्यक्षवाद है। इसलिए कॉम्टे को प्रत्यक्षवाद का जन्मदाता या पिता कहा जाता है।

कॉम्टे का कथन है कि संपूर्ण ब्रह्मांड “अपरिवर्तनीय प्राकृतिक नियमों” द्वारा व्यवस्थित तथा निर्देशित होता है। यदि इन प्राकृतिक नियमों को हमें ठीक से समझना है तो उसे केवल वैज्ञानिक विधियों द्वारा ही समझा जा सकता है। वैज्ञानिक विधियों में कल्पना, धर्म आदि का कोई स्थान नहीं है। वैज्ञानिक विधि तो निरीक्षण, परीक्षण, प्रयोग और वर्गीकरण की एक व्यवस्थित कार्यप्रणाली होती है। इस प्रकार निरीक्षण, परीक्षण, प्रयोग और वर्गीकरण पर आधारित वैज्ञानिक विधियों के द्वारा संसार की समस्त घटनाओं को समझना और उसे ज्ञान प्राप्त करना ही प्रत्यक्षवाद है।

question answer in english language  

Explain the theory of positivism put forth by Comte.
Answer: The basis of Comte's thinking is only positivism. Positivist thinking is clearly visible in the basis of all his beliefs. He has emphasized on studying social phenomena through positivism. Thus positivism is Comte's method of studying sociology.Comte says that, “If human knowledge expands in the future, then it can be possible only through the scientific method i.e. observation, test and comparison.”On the basis of this scientific knowledge, intellectual and moral unity among the members of human society will expand, on the basis of which it will be possible to organize and rebuild human society.
Comte's Positivism—   Before Comte, social events are studied through theology, philosophy, political science, economics, ethics etc.Comte took the study of social phenomena out of the scope of the above mentioned sciences and emphasized on studying them through scientific method.The method adopted by him for the study of social phenomena is Positivism. Thus the methodological basis of Comte's sociology is positivism.Thus the methodological basis of Comte's sociology is positivism. Hence Comte is called the father or father of positivism.

Comte states that the entire universe is organized and directed by "immutable natural laws".If we have to understand these natural laws properly then they can be understood only by scientific methods. There is no place for imagination, religion etc. in scientific methods.The scientific method is a systematic method of observation, testing, experimentation and classification.In this way, positivism is to understand and gain knowledge of all the phenomena of the world through scientific methods based on observation, testing, experimentation and classification.

प्रश्न.3. (अथवा) कार्ल मार्क्स द्वारा ‘द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद’ को समझाइये।
उत्तर— द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद कार्ल मार्क्स के विचारों का मूल-आधार है। द्वन्द्ववाद की अवधारणा कार्ल मार्क्स ने ही हीगल से ग्रहण की थी, परंतु मार्क्स ने हीगल के द्वन्द्ववाद का केवल बाह्य आवरण लिया, उसकी आत्मा को उसने अस्वीकार किया।
    हीगल ने विश्व के विकास को द्वन्द्ववाद के आधार पर स्पष्ट किया है। हीगल ने द्वन्द्ववाद में परिवर्तित की तार्किक की प्रक्रिया को वाद, प्रतिवाद एवं संवाद द्वारा स्पष्ट किया है। प्रारंभ ‘वाद’ से होता है जो स्वयं विरोधाभासों को जन्म देता है। इसे ही ‘प्रतिवाद’ कहते हैं। विश्व में प्रत्येक वस्तु की प्रतिवादी वस्तु होती है अवश्य होती है इन दोनों में संघर्ष होता है जिससे तीसरी वस्तु ‘संवाद’ का निर्माण होता है। यह संवाद भी अस्थाई होता है। कुछ समय पश्चात् संवाद ‘वाद’ का स्थान ग्रहण कर लेता है और इस प्रकार है प्रक्रिया अनन्त-काल तक चलती रहती है और इस प्रकार वाद, प्रतिवाद और संवाद के निरन्तर क्रम से गतिशील रहता है, विकसित होता है।
    हीगल के द्वन्द्ववाद का आधार विचार, आत्मा या विश्वात्मा है। ‌आत्मा अपने आदर्शों की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ने का प्रयत्न करती है और विरोधी- प्रवृत्ति उसे आगे बढ़ने से रोकती है। यह प्रतिवाद है। इस स्थिति में दोनों में संघर्ष होता है जिसके कारण तीसरी अवस्था ‘संवाद’ उत्पन्न होती है जिससे दोनों पूर्ववर्ती अवस्थाओं का मिश्रण होता है।
मार्क्स ने हीगल के विचारों में संशोधन किया। दास कैपिटल नामक अपने ग्रंथ में उसने लिखा है, ‘हीगल की रचनाओं में द्वन्द्ववाद अपने सिर के बल खड़ा है... और उसे पैरों के बल खड़ा कर दिया है।’
  हीगल के दर्शन का तत्व ‘विचारों की प्रधानता’ था उसे कार्ल मार्क्स ने काल्पनिक कहकर अस्वीकार कर दिया। हीगल ने विचार को महत्वपूर्ण माना है। इसके विपरीत मार्क्स यह मानते हैं कि, पदार्थ, प्रकृति का अस्तित्व पहले है, विचार, चेतना, आत्मा आदि उसके बाद में है। भौतिकवाद का मूल विचार यह है कि अस्तित्व प्राथमिक है और वही चेतना को निर्धारित करता है।
     
मार्क्स का दर्शन द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद इसलिये कहलाता है, क्योंकि इसमें प्रकृति के घटनाक्रम को समझने का तरीका द्वन्द्ववादी है। इसके अनुसार प्रकृति गतिशील और परिवर्तनशील है। प्रकृति के अंदर विद्यमान विरोधी शक्तियों के कारण ही विकास होता है।

    मार्क्स के अनुसार, संसार अपनी प्रकृति से भौतिक है। संसार की घटनाओं का आधार गतिशील भौतिक पदार्थ है जो अपनी आंतरिक विशेषताओं से विकसित होता है। यह विकास पदार्थ में निहित एक आंतरिक विरोध द्वारा संचालित होता है। मार्क्स के अनुसार, पदार्थ, प्रकृति और जीव वैषयिक वास्तविकता है ‘पदार्थ चेतना की उपज नहीं है वरन् चेतना स्वयं पदार्थ की ही सर्वश्रेष्ठ उपज मात्र है। विचार को पदार्थ से पृथक करना असंभव है। पदार्थ प्रत्येक प्रकार से परिवर्तनीय है।’

Explain 'dialectical materialism' by Karl Marx.
Answer: Dialectical materialism is the basis of Karl Marx's ideas.The concept of dialectics was adopted by Karl Marx from Hegel, but Marx took only the outer cover of Hegel's dialectic, he rejected his soul.
  Hegel has explained the development of the world on the basis of dialectics. Hegel has explained the process of converting logic into dialectics through debate, argument and dialogue. It begins with 'Vad' which itself gives rise to contradictions. This is what is called 'response'.Every thing in the world has a counter-object, there must be a conflict between these two, due to which the third object 'dialogue' is created. This communication is also temporary. 
After some time the dialogue takes the place of 'Vaad' and thus the process continues for eternity and thus the debate remains dynamic, develops through a continuous sequence of debate and dialogue.
    The basis of Hegel's dialectics is the idea, the soul or the universe. The soul tries to move forward for the attainment of its ideals and the opposing tendencies prevent it from moving forward. This is a counterargument. In this situation, there is a conflict between the two, due to which the third stage 'Samvad' arises, due to which there is a mixture of both the previous states.
   Marx modified Hegel's ideas. In his treatise Das Kapital, he wrote, 'Dualism in Hegel's works stands on its head... and has made it stand on its feet.'
The element of Hegel's philosophy was 'the primacy of ideas', which Karl Marx rejected as imaginary. Hegel considered the idea important. On the contrary, Marx believes that matter, nature exist first, thought, consciousness, soul etc. after that. The basic idea of ​​materialism is that existence is primary and that determines consciousness.
Marx's philosophy is called dialectical materialism because it has a dialectical way of understanding the phenomena of nature. According to this nature is dynamic and changeable.Development takes place only because of the opposing forces existing inside nature.
   According to Marx, the world is material by its nature. The basis of the phenomena of the world is dynamic physical matter that develops from its internal characteristics.This evolution is driven by an internal opposition inherent in matter.According to Marx, matter, nature and living being are the objective reality, 'Matter is not a product of consciousness, but consciousness itself is only the best product of matter'. It is impossible to separate thought from matter.Matter is variable in every way.


प्रश्न.6. (अथवा)
योगेंद्र सिंह द्वारा प्रस्तुत ‘भारतीय परम्परा का आधुनिकीकरण’ को समझाइये।
उत्तर— भारतीय परम्परा का आधुनिकीकरण– भारतीय परंपरा का आधुनिकीकरण समाजशास्त्री योगेंद्र सिंह की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। उद्विकासीय ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के आधार पर आप ने स्पष्ट किया है कि भारतीय परंपरा के अनेक स्रोत रहे हैं और यह उन मूल्यों को दर्शाती है जो सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक संरचना के बीच में द्वन्द्वात्मक संबंध स्थापित करती है। उद्विकासीय सिद्धान्त की मान्यता है कि मानवों के विचार मानसिकता और आवश्यकताएँ समान होती हैं इसीलिए सभी समाजों में एक समान सार्वभौमिक संस्थाओं, जैसे— परीवार, नातेदारी, शिक्षा, आर्थिक संगठन तथा धार्मिक राजनैतिक संगठन विकसित हुये हैं।
योगेंद्र सिंह ने  ‘मॉडर्नाइजेशन ऑफ इंडियन ट्रेडीशन’ नामक अपनी पुस्तक में प्राचीन भारत में सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तनों के आंतरिक कारक, मध्य काल में भारत में इस्लाम के बाद सामाजिक परिवर्तन और अंग्रेजों के बाद परिवर्तन की विवेचना की है। योगेंद्र सिंह लिखते हैं कि सदियों से भारत की एकता और संस्कृति, धार्मिक सिद्धांत और उसकी पुनर्व्याख्या पर भारतीय संस्कृति विविधता के बावजूद एकता के सूत्र में बँधी हुई है।

Explain the 'Modernization of Indian Tradition' presented by Yogendra Singh.
Answer: Modernization of Indian Tradition–Modernization of Indian tradition is an important concept of sociologist Yogendra Singh.On the basis of the evolutionary historical perspective, you have clarified that Indian tradition has had many sources and it reflects the values ​​that social structure and Establishes dialectical relationships between cultural structures. Evolutionary theory recognizes that human beings have similar thoughts, mentality and needs, therefore all societies have common universal institutions, For example, family, kinship, education, economic organization and religious political organization have developed.

    Yogendra Singh in his book 'Modernization of Indian Tradition', internal factors of socio-cultural changes in ancient India, In the medieval period, the social change after Islam in India and the change after the British has been discussed. Yogendra Singh writes that for centuries the unity and culture of India, on religious doctrine and its reinterpretation, Indian culture is tied in the thread of unity despite diversity.

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